हर कोई दुःखी है उन लोगों से जो बेवजह शत्रु की तरह पीछे पड़े रहते हैं और शत्रुता के लिए अपात्र होने के बावजूद शत्रुता निभाने के लिए हर समय निर्लज्ज, बेशर्म और नंगे होकर प्रयास करते रहते हैं। स्वार्थ और तरह-तरह के मोह के पीछे पागल होती जा रही दुनिया में मानवीय मूल्यों का इतना अधिक क्षरण हो चुका है कि अब शायद ही कोई ऎसा बिरला इंसान बचा