– डॉ. दीपक आचार्य बहुत हो चुका अब तक। बरसों गुजार दिए हमने बचपन, शैशव, यौवन, प्रौढ़ और वृद्धावस्था के दिन। फिर भी ढेर सारे प्रश्न आज भी अनुत्तरित ही हैं, जिनका जवाब न हम पा सके हैं, न जमाने की ओर से मिल पाया। ज्ञान, विद्वत्ता और अनुभवों के लिहाज से हम सम्पन्न और महान हो सकते हैं या कि मान सकते हैं। किन्तु हमारे भीतर कुलबुला रहे प्रश्नों