हम सभी लोग कुछ दशकों से विचित्र सी स्थिति में जीने के आदी होते जा रहे हैं। हमारी मनःस्थिति अजीबोगरीब किस्म की होती जा रही है। वैश्वीकरण के मौजूदा दौर में हम अपनों को भुलाकर दुनिया से प्रेम, आत्मीयता और विश्वास पाने के चक्कर में खुद ही इतने अधिक उलझते जा रहे हैं कि पराये अपने नहीं हो सकते, और जो अपने हैं उन पर हम न तो भरोसा करते