समाज की हर इकाई दूसरी इकाइयों को मदद देने के लिए है और इस परस्पर सहकार, समन्वय और सामंजस्य भरी श्रृंखलाओं की पुष्टि से ही सामुदायिक तरक्की की धाराएं वेगवती होती हैं। संसार में द्रव्य, संसाधनों तथा स्थलों और क्षेत्रों आदि का न्यूनाधिक प्रभाव हर युग में परिलक्षित होता है। हम जहाँ रहते हैं अथवा जहाँ हमारा अवतरण हुआ है वहाँ रहने वाले लोगों तथा उन क्षेत्रों के प्रति हमारी