लगता है जैसे सब कुछ ठहर सा गया है। पुराने लोगों का जमघट इस कदर हावी है कि नई पौध को आगे आने का मौका ही नहीं मिल पा रहा है और इस वजह से पुरानी पीढ़ी कहीं स्पीड़ ब्रेकर तो कहीं दूसरी-तीसरी भूमिकाओं में धुँध की तरह इतनी छायी हुई है कि अँधेरा छँटने का नाम तक नहीं ले पा रहा है। बात राजनीति के गलियारों से लेकर समाजसेवा,