बात आस-पास की हो या दूर की। हर कहीं भिखारियों के दर्शन सहज ही हो जाते हैं। यों अपने देश में जब से भीख देने का संबंध पुण्य और धरम से जुड़ गया है तभी से पुरुषार्थ की बजाय भीख पर जिन्दा रहने की प्रवृत्ति कुछ ज्यादा ही पनपती जा रही है। भीख का संबंध गरीबों और अभावग्रस्तों से ही हो, यह जरूरी नहीं, आजकल कोई भी बड़े सम्मान से