बड़े-बड़े पर्वत पिघल कर पानी हो जाते हैं। नदियां और महानदियां अपना वजूद खो देती हैं, हरियाली पलायन कर जाती है और महान से महान भोग-विलास और आरामतलबी परंपरा एक झटके में खत्म हो जाती है। विराटकाय महल ध्वस्त हो जाते हैं और शिखर पुरुष या शिखरस्थ सन्नारियां भी जमींदोज हो जाते हैं। धरती पर कुछ भी हो सकता है। चाहे हमारी कल्पना में हो या न हो। यहाँ यदि