पाश्चात्य किसी के पूरे अपने नहीं हो सकते। उनके लिए परिवार या समाज की अवधारणा व्यथा है। इसलिए उन्हें अपने सभी प्रकार के रिश्तों को परिभाषित और अभिव्यक्त करते हुए दूसरों को जताने के लिए साल भर में कई प्रकार के दिन निर्धारित करने होते हैं और उस दिन विशेष को वे संबंधितों के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने के ढकोसले करते हुए खुद भी उल्लू बनते रहते हैं और दूसरों