(G.N.S) Dt. 31
नई दिल्ली,
उत्तर हरियाणा बिजली वितरण निगम (यूएचबीवीएन), भारत की उन सार्वजनिक बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) में से एक है, जो अपने उच्च घाटे से उबरकर आज वित्तीय रूप से एक सेहतमंद कंपनी बन चुकी है। काउंसिल ऑन एनर्जी, इनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) के मंगलवार को जारी एक अध्ययन के अनुसार, वित्त वर्ष 2014-15 और वित्त वर्ष 2020-21 की समयावधि में यूएचबीवीएन अपने कुल तकनीकी और वाणिज्यिक (एटीएंडसी) घाटे को आधा -34 प्रतिशत से घटाकर 17 प्रतिशत- करने में सफल रहा। किसी डिस्कॉम के एटीएंडसी घाटे को उसकी वित्तीय सेहत का प्रतिबिंब माना जाता है। इस अध्ययन में यह भी पाया गया है कि इन छह वर्षों में बिलिंग दक्षता लगभग 69 प्रतिशत से बढ़कर लगभग 83 प्रतिशत पहुंच गई। इन सुधारों के पीछे उपभोक्ता कनेक्शनों की लगभग संपूर्ण मीटरिंग, उपभोक्ताओं तक समय पर बिजली बिल पहुंचाने के लिए एकीकृत बिलिंग डेटाबेस बनाने, और ज्यादा नुकसान वाले गांवों में ‘म्हारा गांव जगमग गांव’ जैसे कई विशेष प्रयास हैं।
2030 तक 50 प्रतिशत गैर-जीवाश्म ईंधन से बिजली उत्पादन क्षमता और 2070 तक नेट-जीरो अर्थव्यवस्था जैसी भारत की प्रतिबद्धताओं को हासिल करने के लिए डिस्कॉम का वित्तीय रूप से मजबूत होना बहुत आवश्यक है। लेकिन भारत के अधिकांश डिस्कॉम भारी नुकसान का सामना कर रहे हैं। वित्त वर्ष 2020-21 में राष्ट्रीय स्तर पर एटीएंडसी घाटा 22.3 प्रतिशत था। इस रिपोर्ट में यूएचबीवीएन को एक केस स्टडी के तौर पर उपयोग किया गया है, जिसने राष्ट्रीय रुझानों की तुलना में काफी तेजी से अपनी हानियों को कम करने में सफलता पाई है। यूएचबीवीएन को वित्त वर्ष 2018-19 के बाद से शीर्ष 10 डिस्कॉम में स्थान मिल रहा है और यह सरप्लस राजस्व वाले भारत के कुछ सार्वजनिक डिस्कॉम में से एक है। हालांकि, अभी कई चुनौतियां हैं, जिनको दूर करने की जरूरत है।
शालू अग्रवाल, सीनियर प्रोग्राम लीड, सीईईडब्ल्यू, ने कहा, “पिछले दशक ने भारत में सभी घरों तक विद्युतीकरण का एक महत्वपूर्ण पड़ाव देखा। इस दशक में हमारा लक्ष्य बिजली वितरण कंपनियों की सेहत को सुधारना और उन्हें डिजिटल बनाना होगा, ताकि वे स्वच्छ, विश्वसनीय और सस्ती बिजली आपूर्ति सुनिश्चित कर सके। डिस्कॉम और बिजली नियामकों के ठोस प्रयासों के कारण यूएचबीवीएन डिस्कॉम की वित्तीय सेहत में आया बदलाव सफलता की एक प्रेरणादायक कहानी है। पॉवर फाइनेंस कॉर्पोरेशन के नए आंकड़े भी यूएचबीवीएन की प्रगति की तरफ इशारा करते हैं। वित्त वर्ष 2021-22 के लिए यूएचबीवीएन का घाटा और कम होकर 14 प्रतिशत तक पहुंच गया, जबकि अखिल भारतीय स्तर पर एटीएंडसी घाटा कम होकर 16.43 प्रतिशत रहा।”
सीईईडब्ल्यू की इस रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि एटीएंडसी घाटे को दूर करने में जबरदस्त प्रगति के बावजूद, ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां पर यूएचबीवीएन में और अधिक सुधार हो सकता है। डिस्कॉम के स्तर पर, सीईईडब्ल्यू रिपोर्ट में पाया गया कि बिल वितरण में देरी, मीटर रीडर्स के लिए असमान कार्यभार और अपर्याप्त कमीशन, खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में, प्रगति में बाधा बन रहे हैं। बिजली चोरी का भी प्रचलन है, जिससे निपटना एक चुनौती है। इस अध्ययन के तहत यूएचबीवीएन के चार उच्च घाटे वाले सर्किलों में लगभग 1,600 उपभोक्ताओं में किए गए सर्वेक्षण में यह भी पाया कि एक साल पहले शिकायत दर्ज करने वाले लगभग 70 प्रतिशत उपभोक्ताओं की शिकायतों का समाधान हो गया था। हालांकि, अनियमित भुगतान और आर्थिक रूप से सक्षम उपभोक्ताओं से बिलों की कम वसूली जैसे मुद्दे अभी भी मौजूद हैं।
भरत शर्मा, प्रोग्राम एसोसिएट, सीईईडब्ल्यू, ने कहा, “भारत के सरकारी डिस्कॉम की वित्तीय सेहत में सुधार बेहतर परिचालन कुशलता और मजबूत उपभोक्ता विश्वास व जुड़ाव पर निर्भर है। संशोधित वितरण क्षेत्र योजना (आरडीएसएस) स्मार्ट मीटर लगाकर और बुनियादी ढांचे में सुधार करके परिचालन में कुशलता ला सकती है। लेकिन उपभोक्ताओं का भरोसा बढ़ाने के लिए यूएचबीवीएन की म्हारा गांव जगमग गांव पहल जैसे लक्षित प्रयास करने की आवश्यकता है। म्हारा गांव जगमग गांव पहल ने ग्रामीण क्षेत्रों में घाटे को कम किया है और बिल कलेक्शन की कुशलता को बिजली आपूर्ति की अवधि से जोड़कर गांवों को सामूहिक रूप से प्रोत्साहित किया है। यूएचबीवीएन ने उपभोक्ता जुड़ाव और जागरूकता को लाने के लिए बिजली पंचायत मंच को भी संस्थागत बनाया है। ये तमाम कोशिशें उपभोक्ताओं के बीच भरोसा पैदा करने, और राजस्व वसूली को सुधारने के इच्छुक डिस्कॉम को एक मूल्यवान सीख देती हैं।”
बिजली वितरण कंपनियों की वित्तीय सेहत एक ऐसा महत्वपूर्ण कारक है, जो स्वच्छ और न्यायसंगत ऊर्जा भविष्य के लिए भारत के प्रयासों की सफलता को सुनिश्चित करेगा। इनके घाटे में कमी लाने के लिए सीईईडब्ल्यू की इस रिपोर्ट में आरडीएसएस के तहत निर्धारित स्मार्ट मीटर के जरिए बिजली वितरण नेटवर्क को डिजिटल बनाने, प्राथमिकता के आधार पर दोषपूर्ण मीटरों को बदलने का एक ठोस अभियान चलाने, सक्रिय शिकायत निवारण व्यवस्था के माध्यम से उपभोक्ताओं का भरोसा सुधारने और गो डिजिटल कैंपेन से जोड़कर ग्रामीण क्षेत्रों में घर-घर जाकर भुगतान एकत्रित करने जैसे कदमों के बारे में सुझाव दिया गया है।