हम अपनी जिन्दगी का आधे से अधिक भाग दूसरों के बारे में चिन्ता या चिन्तन में गँवा दिया करते हैं और जीवन का यह पूरा का पूरा अमूल्य समय हमारे हाथ से फिसलता ही चला जाता है। इस सत्य का बोध मरने का समय आने पर ही हो पाता है। हम सभी रोजाना इस यथार्थ से वाकिफ होते रहते हैं किन्तु स्व की बजाय पर कर्म के प्रति अधिक गंभीर,