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बैंको को आक्सीजन की दरकार

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Share this articleबैंक देश की अर्थव्यवस्था के वाहक हैं, सामाजिक-आर्थिक तब्दीली के सबसे कारगर यंत्र भी, लेकिन बैंकिंग व्यवसाय की अंदरूनी स्थिति चरमरा रही है। भारतीय अर्थव्यवस्था के बैंक रीढ़ हैं. पिछले कुछ वर्षों से देश के सामाजिक-आर्थिक हालात बदलने में भी बैंक सरकार की एकमात्र प्रभावी एजेंसी के रूप में कार्यरत हैं. कभी-कभार सेठिया घोटाले जैसे कांड होते हैं।देश में पिछले चार साल में 90,000 करोड़ से ज्यादा के
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