हम सभी लोग सच बोलने में विश्वास करते हैं किन्तु पूरी बेशर्मी से झूठ बोलते हैं। और झूठ भी इतना कि इसका न हमें कभी कोई पछतावा होता है और न आत्मग्लानि का अनुभव। हो भी कैसे, जब हमने झूठ बोलने को ही युगीन संस्कार के रूप में स्वीकार कर लिया है। और फिर झूठ बोलने के मामले में हम अकेले ही बेशर्म थोड़े ही हैं, हर कोई किसी न