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भारत सोने की चिड़िया नहीं सोने के शेर के रूप में खड़ा होगा : राष्ट्र संत स्वामी गोविन्द देव गिरि महाराज

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(G.N.S) dt. 20

सीयूजी में ‘भारतीय संस्कृति एवं सनातन मूल्य’ पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

गांधीनगर,

गुजरात केन्द्रीय विश्वविद्यालय (सीयूजी) के हिन्दू अध्ययन पाठ्यक्रम के अन्तर्गत सम्पन्न हुई राष्ट्रीय संगोष्ठी के मुख्य अतिथि महर्षि वेदव्यास प्रतिष्ठान, पुणे के संस्थापक एवं श्री राम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास, अयोध्या के कोषाध्यक्ष राष्ट्र संत स्वामी गोविन्द देव गिरि महाराज ने कहा कि हमें भारतीय संस्कृति एवं मूल्यों का चिंतन करना हैं। उन्होंने कहा कि जब वे विदेश में अध्ययन करने के बाद भारत लौटे तो महसूस किया कि हमारी संस्कृति और ग्रंथों में वो सारा ज्ञान पूर्व से ही विद्यमान है जो हमें अंग्रेजी भाषा में देखने और सुनने को मिलता है। उन्होंने कहा कि मुख्य रूप से अंग्रेजी भाषा में प्रबंधन, आत्मविकास, मानवीय संबंध और नेतृत्व गुण विकास जैसे विषयों के बारे में सर्वाधिक लिखा गया है, ऐसे में यह बात सामने आई है कि विचार नए नहीं है, ये सब हमने महाभारत, रामायण और भगवद्गीता में पढ़ा है। केवल विचारों की अभिव्यक्ति अंग्रेजी में है, जिसकी वजह से हमें यह ज्ञान नया लगता है। हमें हमारी संस्कृति की तरफ सीखने और समझने की दृष्टि से देखने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि पश्चिम के लोगों ने संस्कृत को मृत भाषा बताया लेकिन संस्कृत ही एकमात्र ऐसी भाषा है जो कम्प्यूटर के लिए सर्वोत्तम है। उन्होंने कहा कि हमें हमारी वैभवशाली शिक्षा पद्धति से गुमराह किया गया। 1836 में जो अंग्रेजी शिक्षा लागू हुई, उससे पहले 1818 तक के सारी शिक्षा पद्धतियों का सर्वेक्षण कर अंग्रेजों ने इसे खत्म करने की योजना बनाई। उन्होंने कहा कि हमारे यहां गुरुकुल परंपरा थी। उन्होंने मैक्स मूलर के पत्र का जिक्र करते हुए कहा कि भारत को सदा के लिए गुलाम बनाने के लिए आवश्यक है कि यहां की शिक्षा पद्धति को बदला जाएं। उन्होंने बताया कि भारतभूमि का स्वर्णिम इतिहास रहा है। उन्होंने कहा कि अब भारत सोने की चिड़िया नहीं सोने के शेर के रूप में खड़ा होगा। हमें भारतीयता का गर्व महसूस करना होगा। उन्होंने बताया कि विश्व की सभी संस्कृतियां नष्ट हो गई लेकिन भारत की संस्कृति अमिट है। हमारी संस्कृति ने मानव कल्याण के लिए बहुत कुछ दिया है। भारत के मनीषियों ने मानव जाति का मैनेजमेंट सीखा है। उन्होंने आगे कहा कि ज्ञान शक्ति और क्रियाशक्ति इच्छाशक्ति के पीछे चलती है। हमारे पास इच्छाएं होनी चाहिए। महान बनने के लिए कामनाएं होनी चाहिए। हमें जीवन में टाइम डिविजन रखना चाहिए। हमारे धर्म में किसी भी प्रकार की निषेधात्मकता नहीं आई है। हमने पूरे विश्व को एकाकार करने का कार्य किया है। उन्होंने यह भी बताया कि धर्म का अनुवाद रिलीजन नहीं हो सकता। रिलीजन महज एक पूजा पद्धति है लेकिन पूरा धर्म नहीं है। हमारे सनातन धर्म की तुलना किसी भी धर्म से नहीं की जा सकती। उन्होंने व्यष्टि, समष्टि, सृष्टि और परमेष्टि में संतुलन की बात कही। वैदिक वांग्मय का भी हमें अध्ययन करना चाहिए। कार्यक्रम में आए विशिष्ट अतिथि प्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक डॉ. ओउम् प्रकाश पाण्डेय ने कहा कि कर्णावती की यह धरती स्वामी जी की श्रद्धेय उपस्थिति से धन्य हो गई है। उन्होंने कहा कि सभी भौतिक पदार्थों में ईश्वर का निवास होता है, अत:हमें हम कण-कण में देवत्व को देखना चाहिए। हमारी संस्कृति में महज शिक्षा की डिग्री नहीं दी जाती थी बल्कि एक वैज्ञानिक दृष्टि को आत्मसात किया जाता है, जिसमें दूसरी स्त्री को माता के समान माना जाता है।

संस्कारों की प्रयोगशाला है सीयूजी
इस अवसर पर ज्योतिर्विद पं. रामनारायण शर्मा ने कहा कि हमें हमारे सदाचारों को बनाएं रखना होगा। 16 संस्कारों में भगवान की पूजा होती है। उन्होंने कहा कि हमारा नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होता है, कलश स्थापना होती है। जो हमारे वैभवशाली परंपरा को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि हमें हमारे बच्चों को दिनचर्या सिखानी होगी, चरणामृत लेकर मंदिर जाना सिखाना होगा। कार्यक्रम में आए विश्व हिन्दू परिषद के केन्द्रीय मार्गदर्शक मंडल के धर्माचार्य महामंडेलश्वर अखिलेश्वरदास महाराज ने कहा कि भारतीय संस्कृति एवं भारतीय संस्कारों से सृजित सीयूजी ने सिर्फ संस्कृति का प्रचार-प्रसार ही नहीं किया अपितु विश्वविद्यालय में आत्मसात भी किया है। उन्होंने कहा कि गुजरात केन्द्रीय विश्वविद्यालय संस्कारों की प्रयोगशाला है। संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय कुलपति प्रो. रमाशंकर दूबे ने कहा कि हमारा ध्येय ऐसे वैश्विक युवाओं व युवतियों का निर्माण करना चाहिए जिनकी जड़े भारतीयता में हो। कार्यक्रम की शुरुआत मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलन से हुई। कार्यक्रम के शुभारंभ में विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. एच बी पटेल ने सभी का स्वागत संबोधन प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के समापन पर हिंदी विभाग की सहायक आचार्य डॉ. प्रेमलता देवी ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया।