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महाराष्ट्रः शरद पवार कि “चाणक्य” चाल में कब- क्यूं- क्यों और कैसे फसी भाजपा….!!

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अजीत कार्ड का उपयोग न किया होता तो भाजपा विधानसभा भंग करने कि तैयारी में थी भाजपा लेकिन पवार चाचा-भतिजे ने अपनी सियासी चाल में बघियां उधेड के रख दी….!, उद्धव और सोनिया गांधी को विश्वास में लेकर दांव खेला शरद पवार ने…. और केसरीलाल चारों खाने चित्त…!

(जी.एन.एस.,प्रविण घमंडे) दि. 29
महाराष्ट्र भारत के महाराष्ट्र राज्य में बालासाहेब का सपना आखिर भाजपा को परे कर पूरा हो ही गया. ठाकरे परिवार से उद्धव सब से पहले सीएम बने.शिवसेना के मुख्यालय मातोश्री के साथ दिल्ही में 10, जनपक्ष और एनसीपी के सुप्रिमो शरद पवार के यहां भी खुशी खुशशी का माहौल है. 24

भाजपा शरदचाल में फंस गई. अजीत ने उप मुख्यमंत्री बन कर अपने केस को ढिले कर दिये. विधानसभा भंग होने से बच गई. और उद्धव छत्रपति शिवाजीराव महाराज के चरणों को नमन कर सीएम भी बन गए….!!

अक्तूबर को विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद एक महिने तक महाराष्ट्र के राजभवन में, भाजपा के मुखिया अमित शाह के कार्यालय, राष्ट्रपति भवन औप पीएमओ में जो घमासान काम किया गया महाराष्ट्र में भाजपा की फिर से सरकार बनाने के लिये शरद पवार की पार्टी के बागी नेता अजीत पवार के सहारे. लेकिन अजीत का सहारा ज्यादा नही चला. 78 घंटे में अजीत को उसके दो घंटे बाद देवेन्द्र फडणवीस को सरकार छोड देनी पडी. और तीन पहिये वाली गाडी में उद्धव को लेकर शरद शिवाजी पार्क पहंचे और मातोश्री की गाडी सरकारी पार्किंग में पार्क कर दी…..!
सरकार तो बन गइ लेकिन एनसीपी से अजीत का भाजपा में जाना, वापिस आना, एनसीपी द्वारा उसे माफ करना, कोई गीला नहीं….कोइ सिकवा नहीं….शपथग्रहण में भी हाजिर. चाचा शरद द्वारा कोइ डांट नहीं, शरद पवार की बेटी सुप्रिया द्वारा खुशी खुशी चचेरे भाइ को गले लगाना, अजीत के साथ आये बागी विधायकों का बारी बारी वापिस लौट जाना, इसके लिये फडणवीस से पूछे जानें पर मौन रहना…ये कुछ ऐसे सवाल है जिसका जवाब अजीत, शरदजी, उद्धव, सोनिया गांधी के पास है. लेकिन ये अभी नहीं बोलेंगे. लेकिन राजनीति में ऐसे सस्पेन्स लंबे समय तक कहां छिपे रहते है भला….!

मातोश्री और 10, जनपथ शरदचाल के तहत खामोश रहे. और भाजपा पर निशाना बनाया जोरों का और अजीत पर धीरे से.


महाराष्ट्र में 22 नवम्बर से लेकर अगले 80 घंटे तक यानि फडणवीस सरकार के इस्तीफे तक जो कुछ हुवा उसकी जबरी और चौंका देने वाली विस्फोटक जानकारी मिल रही है जो कीसी रहस्यमय फिल्म से कम नहीं. इस सारे सियासी खेल में नायक साबित हुये ध मराठाकिंग शरद पवार….! उन्हें सहयोगी बने सोनिया गांधी, उद्धव ठाकरे और अजीत पवार. बोफोर्स तोप से गोले दागे शरद ने और ठीक निशाना बैठा केसरीलाल पर….! केसरीलाल चारों खाने चित्त. हो सकता है की भाजपा के नेता अब तो नहीं लेकिन फिर कभी ये बात कहेंगे की अजीत पवार पर विशश्वास रखना उनकी सब से बडी भूल थी…..!

शरद पवार ने ऐसे हालात बनाये भाजपा के लिये की वे तीन पहियों वाली सरकार को बनन से रोक नहीं पाये. और भाजपा को हौले से प्रतिपक्ष में बिठा दिया.


तो ये है वो जानकारी जो बता रही है की कैसे बनी तीन पहियोवाली सरकार….!
महाराष्ट्र के राज्यपाल भगतसिंह कोशियारीने पहले भाजपा से पूछा. सरकार बना सकते हो…? जवाब मिला-नाजी. फिर शिवसेना को. फिर एनसीपी को पूछा-क्यों भाई, बहुमत है क्या…? एनसीपीने ज्यादा वक्त मांगा. लेकिन नहीं मिला. और महाराष्ट्र को मिला राष्ट्रपति शासन.
शरद पवार राजनीति के एक मंझे हुये खिलाडी है. कई बार सीएम और केन्द्र में मंत्री रह चुके है. कीसी जमाना में वे कांग्रेस में पीएम पद के उम्मीदवार माने जाते थे. राजनीतिक सूत्रो से जो जानकारी मिली है उसके अनुसार, शरद पवार को लगा की ये भाजपा और अमित शाह है. वे सीधे सीधे तो शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस के सरकार बनाने नहीं देंगे. जैसे ही वे राजभवन जायेंगे बहुमत लेकर तो राज्यपाल कह देंगें कि ठीक है, सोचता हुं. और फिर जैसे अचानक राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर डाली कोशियारीजी ने वैसे ही वे रपट कर देंगे कि उन्हें नहीं लगता कि कोई स्थिर सरकार दे शकता है ईसलिये विधानसभा भंग की जाय…..!
मामला खतम. जब विधानसभा ही न हो तो सरकार कैसे बने…? फिर से चुनाव के मेदान में जाना पडे. क्या किया जाय…? और फिर शुरू हुई शरदचाल…..! उद्धव और सोनिया गांधी को विश्वास में लिया गया की वे क्या करने जा रहे है. चाल उलटी भी पड सकती थी. लेकिन सभी ने माना की केन्द्र में भाजपा है और कम से कम कांग्रेस को तो सरकार बनाने से रोकने के लिये वह कुछ भी कर सकती है. एक बार शिवसेना के सामने भाजपा नरम हो जाय लेकिन कांग्रेस के सामने….? कभी नहीं…!
सियासी शतरंज की बाजी बिछाई गई. सब से पहले अजीत पवार को तैयार किया गया. एनसीपी के 54 विधायकों के हस्ताक्षर वाली सूचि उन्हें दी गई. पुराने मित्र गोपीनाथ मुंडे के पुत्र धनजंय का उपयोग किया गया.
शरद पवार नें पूणे-मुंबई और दिल्ही के चक्कर लगा कर साझा लघुतम कार्यक्रम के साथ सरकार बनाने का काम पूरा किया. और तय हुआ की कल राजभवन जा कर कहेंगे की हमारे पास बहुमत है, ये लिजिये हमे बुलाईये सरकार बनाने के लिये. मिडिया को भी यह बात जाहिक की गई.
लेकिन उससे पहले यानी 22 नव्मबर की रात 9 बजे से नये समीकरण बनने लगे शरदचाल के तहत.. अजीत ने फडणवीस का संपर्क किया धनंजय मुंडे के जरिये. कहा गया की अजीतदादा एनसीपी में नाराज है, भाजपा के साथ मिल कर सरकार बनाना चाहते है. 54 विधायकों के हस्ताक्षर उनके पास है. फडणवीस ने अजीत से बात की. और मिल कर सूचि दिखाई. फडणवीस ने दिल्ही में मोटाभाई अमित शाह को बताया. दाल गलना शुरू हुई. मूंह में पानी आने लगा. आइबी के जरिये पुष्टि की गइ की अजीत के साथ वाकई में कितने विधायक है. पता चला की 27 तो है ही. 105 भाजपा के, थोडे बहोत निर्दलिय विधायक और 27 अजीतवाले. सरकार बन गई तो ओर भी आ सकते है. पीएम मोदी से बात की गई. कांग्रेस मुक्त भारत के तहत हरी झंडी दी गई. और 22 नव. की रात में ही अजीत को भाजपा ने अपने पास बुला लिया उनके विधायकों के साथ. फडणवीस मिले राज्यपाल को. हमारे पास बहुमत है, ये लिजिये एनसीपी का समर्थन पत्र.
सैंया भये कोतवाल तो फिर डर काहे का. राज्यपाल तो भाजपा के ही. केन्द्र में भी भाजपा. राष्ट्रपति भी उनके ही. और रातोरात राष्ट्रपति शासन हटाने का खेल पूरा कर सुबह हो गई मामू….की तरह टीवी में फडणवीस सीएम और अजीत पवार डिप्टी सीएम की शपथ ले रहे है…..! निशाना बैठ गया.
और फिर तय बाजी की तरह भाजपा तथा राज्यपाल के खिलाफ हल्लीगुल्ला शोर शराबा किया गया. अजीत तुम वापिस आ जाओ….आ अब लौट चले….ये कीसे के नहीं है….ऐसी पुकारे सुनाई दी मुंबई की गलीयों में. मामला पहुंचाया गया सुप्रिम कोर्ट में. तुरन्त ही हो फलोर टेस्ट. एक दिन निकल गया. दुसरे दिन आया फैंसला. और अजीत के साथ गये एनसीपी के विधायक एक एक कर वापिस शरददादा के पास. गिनती हुई. हम पांच नहीं लेकिन हम 162……! पिक्चर साफ हो गया. अजीत के साथ सात विधायक भी नहीं. और फलोर टेस्ट से पहले अजीत ने दिया इस्तीफा. बाद में फडणवीस ने सब से कम समय के लिये सीएम बनने का रिकार्ड अपने नाम कर लिया. 80 घंटे. उन्हों ने भी दिया इस्तीफा. शरदचाल का एक अध्याय पूर्ण.
दुसरे अध्याय में और फिर जो हुआ वो देख कर भाजपा के शिर्ष नेता भी सोच रहे होंगे की जिसने अपने ही घर में डाका डाला, विश्वासघात किया. उसे फिर से एनसीपी ने गले लगाया. उसे कीसी ने फटकार नहीं लगाई. सुबह का भूला….बताया. और उद्धव के शपथग्रहण समारोह में भी अजीत को बराबरी का सन्मान मिला.
सूत्रो की माने तो शरद ने भाजपा को सरकार बनाने का मौका दिया अपना ही आदमी उनका बना कर. सरकार बन गई और अजीत तथा विधायक वापिस आ गये. मामला कोर्ट पहुंचाया गया. ताकी भाजपा को ऐसा लगे की अजीत से शरद और अन्य नेता नाराज है. होटेल में वी 162 को खेल…शतरंजी चाल थी.
शरद पवार ने ऐसे हालात बनाये भाजपा के लिये की वे तीन पहियों वाली सरकार को बनन से रोक नहीं पाये. और भाजपा को हौले से प्रतिपक्ष में बिठा दिया.
सूत्र के अनुसार, यदि सोनिया और शिवसेना ने अजीत के बागी तेवर के बाद शरद पर कोइ आशंका नहीं जताई. सोनिया को तो पहले से ही शरद पर भरोसा नहीं. शरद के ही परिवार के अजीत ने बंड कर दिया लेकिन मातोश्री और 10, जनपथ शरदचाल के तहत खामोश रहे. और भाजपा पर निशाना बनाया जोरों का और अजीत पर धीरे से.
यदि उद्धव को ये मालुम नहीं होता अजीत पवारवाली रणनीति के बारे में तो अजीत के बंड पर शिवसेना ने मुंबई और महाराष्ट्र बंद कर दिया होता. लेकिन वे भी शायद जानते ही थे. और खामोश रह कर कहते रहे की शरददादा पर विश्वास है….वे जो करे वो सही…!
भाजपा को और उनके आज के नेता को जानने वाले कहते है कि ये बात तो मानना ही पडेंगी कि यदि शरद पवार ने सीधे सीधे सरकार बनाने की पेशकश की होती तो विधानसभा भंग कर दी जाती. भाजपा कभी नहीं चाहती की कांग्रेस को सत्ता मिले. इसलिये ये सारा अजीतबंड का खेल रचाया गया शरद पवार के द्वारा. अजीत की सन्मानजनक घर वापसी. फडणवीस की भी 80 घंटे में बडे बेआबरू हो कर निकले तेरे कूचे से…..की तरह घर वापसी. और उद्धव के नेतृत्व में बन गई तीन पहियों वाली सरकार रणभेरी के साथ…..!
यदि शरदने ये चाल न चली होती तो तीन पक्षो की सरकार बनना ना मुमकिन था. विधानसभा भंग हो सकती थी. और यही एक आखरी दाव भाजपा के पास बचा था तीनों को सरकार बनाने से रोकने के लिये. लेकिन शरद पवारने अजीत नामक झुनझुना पकडा दिया भाजपा को. भाजपा ने बजाया और फिर वापिस ले लिया….!
सूत्र कहते है की भाजपा शरदचाल में फंस गई. अजीत ने उप मुख्यमंत्री बन कर अपने केस को ढिले कर दिये. विधानसभा भंग होने से बच गई. भाजपा का फिर से सरकार बनाने का सपना पूरा होने दिया शरद पवार ने. और फिर ऐसी चाल चली की भाजपा मूंह देखते रह गई और उद्धव छत्रपति शिवाजीराव महाराज के चरणों को नमन कर सीएम बने और भाजपा को असल में बताया कि शिवसेना क्या चीज है…..!!

अक्तूबर को विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद एक महिने तक महाराष्ट्र के राजभवन में, भाजपा के मुखिया अमित शाह के कार्यालय, राष्ट्रपति भवन औप पीएमओ में जो घमासान काम किया गया महाराष्ट्र में भाजपा की फिर से सरकार बनाने के लिये शरद पवार की पार्टी के बागी नेता अजीत पवार के सहारे. लेकिन अजीत का सहारा ज्यादा नही चला. 78 घंटे में अजीत को उसके दो घंटे बाद देवेन्द्र फडणवीस को सरकार छोड देनी पडी. और तीन पहिये वाली गाडी में उद्धव को लेकर शरद शिवाजी पार्क पहंचे और मातोश्री की गाडी सरकारी पार्किंग में पार्क कर दी…..!
सरकार तो बन गइ लेकिन एनसीपी से अजीत का भाजपा में जाना, वापिस आना, एनसीपी द्वारा उसे माफ करना, कोई गीला नहीं….कोइ सिकवा नहीं….शपथग्रहण में भी हाजिर. चाचा शरद द्वारा कोइ डांट नहीं, शरद पवार की बेटी सुप्रिया द्वारा खुशी खुशी चचेरे भाइ को गले लगाना, अजीत के साथ आये बागी विधायकों का बारी बारी वापिस लौट जाना, इसके लिये फडणवीस से पूछे जानें पर मौन रहना…ये कुछ ऐसे सवाल है जिसका जवाब अजीत, शरदजी, उद्धव, सोनिया गांधी के पास है. लेकिन ये अभी नहीं बोलेंगे. लेकिन राजनीति में ऐसे सस्पेन्स लंबे समय तक कहां छिपे रहते है भला….!
महाराष्ट्र में 22 नवम्बर से लेकर अगले 80 घंटे तक यानि फडणवीस सरकार के इस्तीफे तक जो कुछ हुवा उसकी जबरी और चौंका देने वाली विस्फोटक जानकारी मिल रही है जो कीसी रहस्यमय फिल्म से कम नहीं. इस सारे सियासी खेल में नायक साबित हुये ध मराठाकिंग शरद पवार….! उन्हें सहयोगी बने सोनिया गांधी, उद्धव ठाकरे और अजीत पवार. बोफोर्स तोप से गोले दागे शरद ने और ठीक निशाना बैठा केसरीलाल पर….! केसरीलाल चारों खाने चित्त. हो सकता है की भाजपा के नेता अब तो नहीं लेकिन फिर कभी ये बात कहेंगे की अजीत पवार पर विशश्वास रखना उनकी सब से बडी भूल थी…..!
तो ये है वो जानकारी जो बता रही है की कैसे बनी तीन पहियोवाली सरकार….!
महाराष्ट्र के राज्यपाल भगतसिंह कोशियारीने पहले भाजपा से पूछा. सरकार बना सकते हो…? जवाब मिला-नाजी. फिर शिवसेना को. फिर एनसीपी को पूछा-क्यों भाई, बहुमत है क्या…? एनसीपीने ज्यादा वक्त मांगा. लेकिन नहीं मिला. और महाराष्ट्र को मिला राष्ट्रपति शासन.
शरद पवार राजनीति के एक मंझे हुये खिलाडी है. कई बार सीएम और केन्द्र में मंत्री रह चुके है. कीसी जमाना में वे कांग्रेस में पीएम पद के उम्मीदवार माने जाते थे. राजनीतिक सूत्रो से जो जानकारी मिली है उसके अनुसार, शरद पवार को लगा की ये भाजपा और अमित शाह है. वे सीधे सीधे तो शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस के सरकार बनाने नहीं देंगे. जैसे ही वे राजभवन जायेंगे बहुमत लेकर तो राज्यपाल कह देंगें कि ठीक है, सोचता हुं. और फिर जैसे अचानक राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर डाली कोशियारीजी ने वैसे ही वे रपट कर देंगे कि उन्हें नहीं लगता कि कोई स्थिर सरकार दे शकता है ईसलिये विधानसभा भंग की जाय…..!
मामला खतम. जब विधानसभा ही न हो तो सरकार कैसे बने…? फिर से चुनाव के मेदान में जाना पडे. क्या किया जाय…? और फिर शुरू हुई शरदचाल…..! उद्धव और सोनिया गांधी को विश्वास में लिया गया की वे क्या करने जा रहे है. चाल उलटी भी पड सकती थी. लेकिन सभी ने माना की केन्द्र में भाजपा है और कम से कम कांग्रेस को तो सरकार बनाने से रोकने के लिये वह कुछ भी कर सकती है. एक बार शिवसेना के सामने भाजपा नरम हो जाय लेकिन कांग्रेस के सामने….? कभी नहीं…!
सियासी शतरंज की बाजी बिछाई गई. सब से पहले अजीत पवार को तैयार किया गया. एनसीपी के 54 विधायकों के हस्ताक्षर वाली सूचि उन्हें दी गई. पुराने मित्र गोपीनाथ मुंडे के पुत्र धनजंय का उपयोग किया गया.
शरद पवार नें पूणे-मुंबई और दिल्ही के चक्कर लगा कर साझा लघुतम कार्यक्रम के साथ सरकार बनाने का काम पूरा किया. और तय हुआ की कल राजभवन जा कर कहेंगे की हमारे पास बहुमत है, ये लिजिये हमे बुलाईये सरकार बनाने के लिये. मिडिया को भी यह बात जाहिक की गई.
लेकिन उससे पहले यानी 22 नव्मबर की रात 9 बजे से नये समीकरण बनने लगे शरदचाल के तहत.. अजीत ने फडणवीस का संपर्क किया धनंजय मुंडे के जरिये. कहा गया की अजीतदादा एनसीपी में नाराज है, भाजपा के साथ मिल कर सरकार बनाना चाहते है. 54 विधायकों के हस्ताक्षर उनके पास है. फडणवीस ने अजीत से बात की. और मिल कर सूचि दिखाई. फडणवीस ने दिल्ही में मोटाभाई अमित शाह को बताया. दाल गलना शुरू हुई. मूंह में पानी आने लगा. आइबी के जरिये पुष्टि की गइ की अजीत के साथ वाकई में कितने विधायक है. पता चला की 27 तो है ही. 105 भाजपा के, थोडे बहोत निर्दलिय विधायक और 27 अजीतवाले. सरकार बन गई तो ओर भी आ सकते है. पीएम मोदी से बात की गई. कांग्रेस मुक्त भारत के तहत हरी झंडी दी गई. और 22 नव. की रात में ही अजीत को भाजपा ने अपने पास बुला लिया उनके विधायकों के साथ. फडणवीस मिले राज्यपाल को. हमारे पास बहुमत है, ये लिजिये एनसीपी का समर्थन पत्र.
सैंया भये कोतवाल तो फिर डर काहे का. राज्यपाल तो भाजपा के ही. केन्द्र में भी भाजपा. राष्ट्रपति भी उनके ही. और रातोरात राष्ट्रपति शासन हटाने का खेल पूरा कर सुबह हो गई मामू….की तरह टीवी में फडणवीस सीएम और अजीत पवार डिप्टी सीएम की शपथ ले रहे है…..! निशाना बैठ गया.
और फिर तय बाजी की तरह भाजपा तथा राज्यपाल के खिलाफ हल्लीगुल्ला शोर शराबा किया गया. अजीत तुम वापिस आ जाओ….आ अब लौट चले….ये कीसे के नहीं है….ऐसी पुकारे सुनाई दी मुंबई की गलीयों में. मामला पहुंचाया गया सुप्रिम कोर्ट में. तुरन्त ही हो फलोर टेस्ट. एक दिन निकल गया. दुसरे दिन आया फैंसला. और अजीत के साथ गये एनसीपी के विधायक एक एक कर वापिस शरददादा के पास. गिनती हुई. हम पांच नहीं लेकिन हम 162……! पिक्चर साफ हो गया. अजीत के साथ सात विधायक भी नहीं. और फलोर टेस्ट से पहले अजीत ने दिया इस्तीफा. बाद में फडणवीस ने सब से कम समय के लिये सीएम बनने का रिकार्ड अपने नाम कर लिया. 80 घंटे. उन्हों ने भी दिया इस्तीफा. शरदचाल का एक अध्याय पूर्ण.
दुसरे अध्याय में और फिर जो हुआ वो देख कर भाजपा के शिर्ष नेता भी सोच रहे होंगे की जिसने अपने ही घर में डाका डाला, विश्वासघात किया. उसे फिर से एनसीपी ने गले लगाया. उसे कीसी ने फटकार नहीं लगाई. सुबह का भूला….बताया. और उद्धव के शपथग्रहण समारोह में भी अजीत को बराबरी का सन्मान मिला.
सूत्रो की माने तो शरद ने भाजपा को सरकार बनाने का मौका दिया अपना ही आदमी उनका बना कर. सरकार बन गई और अजीत तथा विधायक वापिस आ गये. मामला कोर्ट पहुंचाया गया. ताकी भाजपा को ऐसा लगे की अजीत से शरद और अन्य नेता नाराज है. होटेल में वी 162 को खेल…शतरंजी चाल थी.
शरद पवार ने ऐसे हालात बनाये भाजपा के लिये की वे तीन पहियों वाली सरकार को बनन से रोक नहीं पाये. और भाजपा को हौले से प्रतिपक्ष में बिठा दिया.
सूत्र के अनुसार, यदि सोनिया और शिवसेना ने अजीत के बागी तेवर के बाद शरद पर कोइ आशंका नहीं जताई. सोनिया को तो पहले से ही शरद पर भरोसा नहीं. शरद के ही परिवार के अजीत ने बंड कर दिया लेकिन मातोश्री और 10, जनपथ शरदचाल के तहत खामोश रहे. और भाजपा पर निशाना बनाया जोरों का और अजीत पर धीरे से.
यदि उद्धव को ये मालुम नहीं होता अजीत पवारवाली रणनीति के बारे में तो अजीत के बंड पर शिवसेना ने मुंबई और महाराष्ट्र बंद कर दिया होता. लेकिन वे भी शायद जानते ही थे. और खामोश रह कर कहते रहे की शरददादा पर विश्वास है….वे जो करे वो सही…!
भाजपा को और उनके आज के नेता को जानने वाले कहते है कि ये बात तो मानना ही पडेंगी कि यदि शरद पवार ने सीधे सीधे सरकार बनाने की पेशकश की होती तो विधानसभा भंग कर दी जाती. भाजपा कभी नहीं चाहती की कांग्रेस को सत्ता मिले. इसलिये ये सारा अजीतबंड का खेल रचाया गया शरद पवार के द्वारा. अजीत की सन्मानजनक घर वापसी. फडणवीस की भी 80 घंटे में बडे बेआबरू हो कर निकले तेरे कूचे से…..की तरह घर वापसी. और उद्धव के नेतृत्व में बन गई तीन पहियों वाली सरकार रणभेरी के साथ…..!
यदि शरदने ये चाल न चली होती तो तीन पक्षो की सरकार बनना ना मुमकिन था. विधानसभा भंग हो सकती थी. और यही एक आखरी दाव भाजपा के पास बचा था तीनों को सरकार बनाने से रोकने के लिये. लेकिन शरद पवारने अजीत नामक झुनझुना पकडा दिया भाजपा को. भाजपा ने बजाया और फिर वापिस ले लिया….!
सूत्र कहते है की भाजपा शरदचाल में फंस गई. अजीत ने उप मुख्यमंत्री बन कर अपने केस को ढिले कर दिये. विधानसभा भंग होने से बच गई. भाजपा का फिर से सरकार बनाने का सपना पूरा होने दिया शरद पवार ने. और फिर ऐसी चाल चली की भाजपा मूंह देखते रह गई और उद्धव छत्रपति शिवाजीराव महाराज के चरणों को नमन कर सीएम बने और भाजपा को असल में बताया कि शिवसेना क्या चीज है…..!!