लकी जैन की खास पेशकश : डरावना सपना या सच..?
मुंगेरीलाल का सवाल : क्या हम बढ़ी हुई जनसंख्या में बोझ वाला हिस्सा हो गए थे..?
मुंगेरी लाल..! सभी के जहन में एक मुंगेरी लाल हमेशा होता है, जो हकीकत से परे सपने, अक्सर देखता है। अब तो राजनेता भी देश की जनता को मुंगेरी लाल का सुखद सपना देखने के लिए बोलते हैं, जैसे तीन दिन पहले बोला गया “बी…..स ला….ख करो….ड़” का सपना। मुंगेरी लाल ने तो पता नहीं क्या-क्या नहीं खरीद लिया..!
खैर… ये क्या हुआ…आज मुंगेरी लाल को हर दिन की तरह सुखद सपना नहीं आया है। उसने एक भयानक सपना देखा..! एक ऐसा सपना जिसने उसे बैचेन कर दिया है, उसकी नींद, चैन, सुख, भूख, प्यास सब छूमंतर सा हो गया है। मुंगेरी लाल बार-बार इस सपने को याद कर भयभीत हो जाता है। मुंगेरी लाल को यूं बैचेन देख मुझसे रहा नहीं गया, मैंने पूछ ही लिया, भाई मुंगेरी तुमने ऐसा क्या सपना देख लिया है कि तुम्हारा चेहरा सफेद हो पड़ा है। तुम्हारी हवाईयां उड़ी हुई हैं..!
मुंगेरी पहले तो सपना बताने से डरता रहा, फिर धीमी आवाज में कहा मैंने पूरी रात एक लंबा और भयानक सपना देखा है..! मैंने देखा देश में 2021 में जनगणना हो रही है, वॉलंटियर गांवों में घरों के बाहर आवाज दे रहे हैं। जब कोई बाहर नहीं आता तो वे अंदर जाकर देखते हैं कि कंकाल पड़े हैं। देश की जनसंख्या में करोड़ों लोग कम हो गए हैं। मुझे सपना आया कि ये कोरोना से जनसंख्या कम हो जाएगी या नियंत्रित हो जाएगी..!
मुंगेरी ने मुझसे पूछा “दीदी” तुम ही बताओ ऐसा होता है क्या..? क्या जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए भी विश्व में ऐसी महामारी योजनाबद्ध तरीक से आ सकती हैं..? पहले तो मैंने मुंगेरी को मना कर दिया, अरे नहीं भाई…ऐसा कहीं नहीं होता है..! लेकिन फिर उसने जो सवाल किए, उन सवालों का जवाब मेरे पास नहीं था..! और शायद किसी के पास नहीं होगा..!
अफसोस..! संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयोग का दिल भी नहीं पसीजा..?
मुंगेरीलाल ने कहा उसने सपने में देखा करोड़ो गरीब-मजदूर लोग कोरोना के संक्रमण काल में सड़कों पर पैदल भूखे, प्यासे, तपती जमीन पर नंगे पांव चल रहे हैं। हजार किलोमीटर के सफर पर चप्पल पहन कर निकले थे, 200 किलोमीटर पहुंचते-पहुंचते चप्पल ने जवाब दे दिया, तो अब मजदूर तपती जमीन पर नंगे पांव ही चल रहे थे..!
मुंगेरी ने कहा सपने में दिखे उन मजदूरों में एक मजदूर कोई और नहीं दीदी, मैं ही था..! मैंने देखा मैं सड़क पर परिवार को लेकर चलते जा रहा हूं, कई और लोग भी चलते हुए दिखायी दे रहे हैं। लेकिन सफर खत्म नहीं हो रहा था। न कोई रेल दिख रही थी, न गाड़ी और न ही बैलगाड़ी..! मेरे जहन में बार-बार आ रहा था कि हमारी यह तस्वीर जिसने देशवासियों को झकझोरा हुआ है, राजनेताओं, सरकार तक तो पहुंच ही गयी होगी। फिर सुनने में आया कि सरकार बस और रेल का इंतजाम कर रही है, लेकिन वो इंतजाम भी सिर्फ कागजी और नाकाफी थे। हम जैसे शायद चंद “अंगुलियों पर गिन सकने वाले” साथी ही उन रेल और बसों में सवार हो सके थे। लेकिन हम लाखों लोग सड़कों पर चल रहे थे, फिर भी हमें कोई गाड़ी नहीं दिखी..?
मुंगेरी ने कहा फिर मेरे जहन में आया कि देश के राजनेता और सरकारें शायद मेरी तरह ही रोज आने वाले सुखद सपने देखने और दिखाने में व्यस्त होगी, लेकिन हमारा दर्द विश्व और संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकारी आयोग तक पहुंच ही जाएगा, जिसके पास आतंकवादियों का दर्द पहुंच जाता है, तो हम तो देश को खड़ा करने वाले मुंगेरी मजदूर हैं।
लेकिन..! अफसोस हमारी ह्रदयविदारक तस्वीरें संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयोग तक भी नहीं पहुंची। कहीं ऐसा तो नहीं हुआ कि हमारा दर्द और तस्वीरें उन तक पहुंच तो गयीं थी, लेकिन उन्होंने कुछ किया नहीं..?
मुंगेरी ने बड़ी ही दर्द भरी आवाज में कहा कि मेरा सपना इतना भयानक था कि मैं सपने में कांप रहा था। मुझे ऐसा लग रहा था कि विश्व की बड़ी-बड़ी ताकतें मिलकर कहीं हमें मारना तो नहीं चाहती हैं..?
“मुंगेरी ने कहा फिर मेरा सपना आगे बढ़ता गया। मैंने देखा मेरे जैसे कई लोग जो सड़क पर चल रहे थे, बढ़ रहे थे, वो रास्ते में गिरे पड़े थे, कुछ के प्राण निकल चुके थे, कुछ की सांसें चल रही थीं। कुछ गिरकर इसी अंतिम इच्छा के साथ खड़े हो रहे थे कि एक बार घर पहुंच गए तो सब ठीक हो जाएगा”।
मुंगेरी जैसे-जैसे सपना बताता जा रहा था, मेरी (सपना सुनने वाली दीदी) धड़कनें भी बढ़ती जा रही थीं, कि अब ये भयानक सपने में आगे क्या बताने वाला है।
मुंगेरी का सवाल जब संक्रमण कम था तब हमें रोक दिया, जब अधिक था तो बॉर्डर खोल दिए..?
मुंगेरी ने बताया कि हमने सफर कोरोना काल के अधिकतम संक्रमण मई में शुरू किया था। पहले हमने सफर मार्च में भी शुरू करना चाहा था, तब देश पूरी तरह रूका ही था, देश में कोरोना संक्रमण और सूर्यदेव की तपन दोनों ही कम थी। हमारे पास न काम था, न पैसे बचे थे। लेकिन तब हमें निकलने से रोक दिया गया था। बॉर्डर सील कर दिए थे। ऐसा लग रहा था मानो हम हिंदुस्तान के किसी राज्य में नहीं, कहीं दूसरे देश में बैठे थे, जहां से अपने देश लौटने के लिए हमें मानो वीजा-पासपोर्ट जैसे दस्तावेज चाहिए थे।
कभी एक टाइम तो कभी दो दिन में एक बार खाना खाकर हमने 50 दिन गुजार दिए थे। जब कोई रास्ता नहीं बचा, तब सफर यही सोच कर शुरू किया कि मरना तो है ही, भूख से मरेंगे या कोरोना से। भूख से अभी मर जाएंगे और कोरोना से शायद बाद में बच भी जाएं या मर जाएं, पता नहीं था, तो सफर कोरोना के अधिकतम संक्रमण और मई की तपती धूप में ही शुरू कर दिया था।
मुंगेरी ने कहा अपना गांव नजदीक दिखायी देने लगा था। 10 दिन हो गए थे चलते-चलते..! पैरों की एड़ियां-तलवे, चमड़े की तरह चप्पल की तरह फट चुके थे और खून भी आ रहा था। लेकिन गांव दिखने की खुशी दर्द को कम कर रही थी। मुझे लगा अब मौत से क्या डरना, अपना घर-आंगन आने वाला है। अब कुछ नहीं होगा।
अब शुरू होगा सपने में दिखी तबाही के मंजर का पार्ट-2
मुंगेरी के चेहरे पर घर-आंगन को देखकर एक पल के लिए आयी वो खुशी अब सपने के आगे के चरण को सोचते-सोचते मायूसी में बदलने लगी थी। मुंगेरी ने कहा… हम घर पहुंच गए थे। सभी खुश थे, पहला दिन भी बीत गया था। लेकिन अब मेरी घरवाली को खांसी हो रही थी। मुझे भी खांसी आने लगी। गांव में देखा कि हर घर में एक-दो मरीज ऐसे हैं जिनको खांसी-बुखार है। देखते-देखते पूरा गांव बीमार पड़ गया था।
भयानक सपने की दहशत अब मुंगेरी की आंखों में साफ नजर आने लगी थी। मुंगेरी ने आगे बताया कि पूरा गांव कोरोना की चपेट में आ चुका था। हम इतनी बड़ी संख्या में थे कि कोई डॉक्टर देखने वाला भी नहीं था। कोई हॉस्पिटल भी नहीं मिला। बीते 50 दिनों में शरीर पहले से ही कमजोर हो चुका था। हम सभी अपने-अपने घरों में बीमारी से जूझ रहे थे। गांव के घरों में लोगों का मरना शुरू हो गया था, लेकिन कुछ घरों में तो लाशें उठाने वाला भी कोई नहीं था, न ही इतनी लकड़ियां थी कि जला सके..!
मुंगेरी ने कहा वह उस तबाही का खौफनाक मंजर को देखकर घबरा रहा था। उसके घर में भी लोगों की एक-एक कर मौत हो रही थी, वह सबकुछ देख रहा था। गांव में वह एक अकेला बचा था जो संक्रमण से तो जीत गया था, लेकिन सबकुछ हार चुका था।
सपने को आगे बताते हुए मुंगेरी ने कहा “फिर 2021 की जनगणना शुरू हुई। घरों में इंसान नहीं, कंकाल मिले और जनगणना में करोड़ों लोग कम हो गए। भारत की जनसंख्या कम हो गयी। मुंगेरी ने कहा यह भयानक सपना देखकर मुझे अब रात को सपने देखने की इच्छा तो क्या, सोने की हिम्मत तक नहीं हो पा रही है।
मुंगेरी के आंखों में कई सवाल थे, कि उसके सपने में कोई वैश्विक संगठन या देश की संस्थाओं ने क्यों मदद को हाथ नहीं बढ़ायां..? क्या यह सोचा-समझा चल रहा है..? क्यों कुछ मामलों में रात को 12 बजे सुनवायी करने वाली कोर्ट को ये भयानक मंजर नहीं दिख रहा था..? और अगर दिख रहा था तो वे रात को सोने की हिम्मत कैसे कर पा रही थीं..?
मैं अब कभी सपने नहीं देखुंगा, बस यह सपना पूरा नहीं होना चाहिए..!
मुंगेरी ने सवाल किया कि क्यों विश्व की सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश चाइना में कोरोना का सबसे ज्यादा कहर बुजुर्गो पर टूटा..? चाइना में बुजुर्गों की संख्या भी तो ज्यादा है…! क्यों अमेरिका, इटली, यूरोप में बुजुर्गों सहित अन्य बीमारियों से ग्रसित लोग ज्यादा मर रहे हैं..?
मुंगेरी लाल का सपना और सवाल सुनकर मेरा दिल बैठ गया था, धड़कने बढ़ गयी थी और दिमाग सुन्न हो गया था। मुंगेरी लाल की तरह मेरे जहन में भी कई सवाल आ गए थे…क्यों कोरोना से पनपे दर्द की ह्दयविदारक तस्वीरें उन आयोगों पर कोई असर नहीं डाल सकीं, जो मानव अधिकारों और मूल्यों के लिए कभी भी खड़ी हो जाती हैं..?
मुंगेरी ने कहा मैंने सपने में देखा कि विदेश में फंसे देशवासियों को सरकार हवाई जहाज से अपने घर लायी थी, लेकिन हमारे लिए ट्रेन-बस तक नहीं हुई, क्यों..?
क्या कोई हमें मरने के लिए छोड़ना चाहता था..? क्या हम बढ़ी हुई जनसंख्या में बोझ वाला हिस्सा हो गए थे..? आखिर क्यों हमारा दर्द और आवाज किसी को सुनाई नहीं दिया..?
मुंगेरी ने कहा मेरे सपने कभी सच नहीं हुए, मैं रोज अफसोस करता था कि सपने सच नहीं होते। उसने मुझसे सवाल किया.. दीदी मेरे हर सपने की तरह यह सपना भी पूरा तो नहीं होगा न..! मुंगेरी ने कहा मैं अब कभी सपने नहीं देखुंगा, बस यह सपना पूरा नहीं होना चाहिए..!