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*विंध्यमण्डल से उद्भव हुआ लोकगायन शैली कजली का* लुप्तप्राय परम्परा-विधा को समुद्यत है सूबे की सरकार

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सोनभद्र | विंध्यमण्डल जननी है कजली विधा की जो आरम्भ हुई विरह गीत से, जिसमें श्रृंगार के संयोग पर नाममात्र के गीत चर्चित हैं जबकि वियोग की अधिकाधिक झलक मिलती है अनेकशः गीतों में। यद्यपि कजली जो कजरी के नाम से अधिक मशहूर है इसकी लम्बी कथा-गाथा है छुए-अनछुए कई पहलुओं के साथ परिवर्तित रूप-स्वरूप सँग परन्तु विरह के बयार की प्रधानता प्रमुख है जबकि विध्यवासिनी देवी मीरजापुर को कज्जला
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