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विशेष रिपोर्ट: कोरोना सामने लडाई लडते लडते कहीं मिडिया का दम न घूंट जाये….!!, आर्थिक बूस्टर मिले

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  • कोरोना सामने की लडाई में प्रिन्ट मिडिया को भी बचाना आवश्यक है….
  • जन जन तक खबर पहुंचानेवाले छोटे छोटे अखबार ही नहीं रहेगें तो खबरो की पूरी सप्लाय चेईन ही टूट सकती है…
  • कोरोना वोरियर्स डाक्टर-नर्स की तरह मिडियाकर्मीयों को भी 50 लाख का बीमा सुरक्षा कवच मिले…
  • जब प्रिन्ट मिडिया ही नहीं बचेगा तो कौन सा मिडिया बचेगा….?!
  • मिडियाकर्मी भी अपनी जान जोखिम में डाल कर कोरोना को हराने और लडाई जीतने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे है, सेल्यूट है ऐसे योध्धाओं को….
  • उद्योगो की तरह मिडिया के लिये भी आर्थिक पैकेज घोषित हौ अखबारो को बचाने के लिये…
  • अखबारो की ओर से प्रेस काउन्सिल इसकी अगुवाई करे, सरकार को पैकेज का प्रस्ताव दे..
  • डीएवीपी नई विज्ञापन पोलिसी बनाये. या वर्तमान पोलिसी में ही बदलाव कर राहत प्रदान करे…
  • हर अखबार जन जन तक खबर पहुंचा सके इतना आर्थिक बूस्टर मिले

(जीएनएसस. विशेष रिपोर्ट)
देश इस वक्त कोरोना के सामने लंबी चलनेवाली लडाई से झूझ रहा है. केन्द्र सरकार और सभी राज्य सरकारोने अपना अनपा मोरचा खोल दिया है और लोकडाउन समेत कइ प्रकार के उपाय भी किये जा रहे है. भला ईस लडाई में मिडिया कैसे अढूता रहता…? मिडिया भी सरकारो के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कोरोना की भयानक स्थिति में और जब कोई बाहर निकल नहीं रहा तब मिडिया कर्मी अपनी जान का जोखिम उठा कर हर पल.. हर घडी…खबरो का सिलसिला घर बैठे लोगो तक अखबार,टीवी और डीजीटल माध्यम से पहुंचा रहा है.
लोकतंत्र में प्रेस को चैथी जागीर बताइ गई है. देस की आझादी का दौर हो या आझादी के बाद भारत को और नये भारत को आगे बढाने में प्रेस-मिडिया ने कोइ कसर नहीं रखी. पिछले कई हप्तो से कोरोना के प्रभाव के चलते सडको पर, अस्पतालो में अखबारो के रिपोर्टर पहुंच कर खबर ले रहे है और टीवी मिडिया के भी रिपोर्टर दिनरात सडको पर भीड में अपनी जान का जाखिम उठा कर जन जन तक समाचार दे रहे है. सरकार ने कोरोना के सामने लड रहे अग्रिम मोरचे के कर्मी डाक्टर-नर्स आदि. के लिये चिंतित है. सरकारने उनकी सुरक्षा के लिये 50 लाख का बीमा कवच प्रदान किया है. ये एक अच्छी बात है. डाक्टर और नर्स के अलावा जो जो लोग अग्रिम मोर्चे पर जान जोखिम में डाल कर अपना कर्तव्य निभा रहै है उस में मिडिया कर्मी भी सामिल है तब सरकार को यह निरअमय करना चाहिये कि मिडिया कर्मीओ को भी 50 लाख का बीमा सुरक्षा कवच मिले. एमपी कुछ पत्रकार कोरोना के शिकार हो गये है अपनी फरज के दौरान.
कोरोना को हराने की इस लडाई में छोटे-बडे सभी अखबार भी अपना कार्य निष्ठापूर्वक निभा रहे है. प्रेस यानि मुद्रित माध्यम की ये आवाज पिछले कई समय से सुनाई दे रही है की सरकार द्वारा उन्हे मिलते विज्ञापनो की संख्या कम कर दी गई है या कई अखबार विज्ञापन नीति से बाहर हो गये है. वजह जो भी है, लेकिन आज के समय में ये सभी अखबार बिना विज्ञापनो के भी कोरोनना को हराने मोदी सरकार की एक आवाज पर सरकार की हर अपील, हर खबर गांव-गांव शहर शहर…हर घर तक पहुंचाने का काम करके देश की सेवा मां एक योध्धा की तरह डटे है.
गुजरात हो या अन्य राज्य इन शबी राज्यो में छोटे-मझले और बडे अखबार अपना काम कर रहै है तब केन्द्र सरकार से यह गूजारिश तो बनती है कि आर्थिक सुस्ती के दौर में छोटे-मझले और बडे उद्योगो को बचाने के लिये राहत पैकेज की घोषणा होती है वैसे ही सरकार के साथ मिल कर समाज की सेवा में लगे इन अखबारो के लिये भी सरकार आर्थिक पैकेज जाहिर करे. छोटे से लेकर बडे अखबार तक को बैंक से लंबी अवधि के लिये कम ब्याज की लौन वगैरहा मिले, विज्ञापन सही मात्रा में मिले, आवश्यक हो तो अखबारो के प्रति विशेष ध्यान देते हुये यदि वर्तमान डीएवीपी की पोलिसी में कोइ बदलाव करना हो तो वह भी करके सरकार कोरोना की लडाई में चौथी जागिर को भी आर्थिक तौर पर मजबूत करे. ताकि जन जन तक सरकार की योजनाओ को पहुंचानेवाले इन अखबारो को नये भारत में नया जीवन मिल सके.
भारत में प्रेस की समस्या के लिये प्रेस काउन्सिल आफ ईन्डिया नामक संगठन भी है. एडिटर्स गिल्ड भी है. आइएनएस जैसी संस्था भी है. ये सभी संस्थाये जिन अखबारो की कोई समस्या हो खास कर विज्ञापन संबंधित कोई शिकायत हो या अन्य कोई भी समस्या हो तो उसे सुने. उनसे मिल कर एक ज्ञापनपत्र तैयार करे और केन्द्र सरकार से मिल कर उसका कोई सकारात्मक हल निकालने की कोशिश करनी चाहिये.
आज कई ऐसे अखबार है जो जहां टीवी नहीं वहां पहुंचता है. शिक्षा और साक्षरता के साथ अखबारो के पाठकगण भी बढ रहे है. आज स्थिति ऐसी है कि कई अखबार बंद हो चुके है. उनके पत्रकार और अन्य स्टाफ प्रभावित हुये है. हो सकता है कि टैक्नोलोजी का भी प्रभाव हो. लेकिन आज के नेट युग में लोगो को सोश्यल मिडिया या अन्य मिडिया से ज्यादा प्रिन्ट मिडिया पर ज्यादा भरोसा है. हाल ही में भारत के प्रमुख प्रिन्ट मिडिया हाउस ने एक विज्ञापन दे कर लोगो तक ये संदेशा पहुंचाया क् सोश्यल मिडिया से सावधान, प्रिन्ट मिडिया पर ही भरोसा रखे. क्योंकि प्रिन्ट मिडिया यानि अखबार कीसी भी खबर की, कीसी भी जानकारी को परख कर ही प्रकाशित करता है. ऐसा नहीं कि कीसी ने कुछ कहा और छाप दिया जैसे सोश्यल मिडिया पर लोग कोई भी जानकारी को जांचे-परखे बिना फटाफट फारवर्ड कर देते है.
आज भी मुद्रित माध्यम करोडो पाठको के लिये भरोसेमंद और अखबार में आया है तो सही ही होगा ऐसे एक विश्वास के साथ अखबार ढते हो तब उस प्रिन्ट माध्यम को बचाने के लिये, जिस में हजारो छोटे छोटे अखबार भी है उन्हे लोकतंत्र को मजबूत करने के लिये और ये सभी मिडिया, डाक्टर-नर्स की सरह अग्रिम मोर्चे पर डटे है तब उन्हे टिकाये रखने के लिये कार्पोरेट सैक्टर की तरह आर्थिक बूस्टर का डोझ देने का निर्णय सरकार ले. इस कार्य में प्रेस काउन्सिल भी अगुवाई करे. सरकार कीसी छोटे बडे अखबार के प्रति भेदभाव न रखते हुये हम सब साथ साथ है…की भावना ऱखते हुये नई डीएवीपी पोलिसी बनाये. या वर्तमान पोलिसी में ही बदलाव कर हर अखबार जन जन तक खबर पहुंचा सके इतना आर्थिक बूस्टर मिले ऐसी कोइ विज्ञापन पोलिसी बनाये. कही ऐसा न हो कि अपने आप को टिकाने की या बचाने की ये लडाई लडते लडते प्रिन्ट मिडिया का दम न घूंट जाये….!! जब प्रिन्ट मिडिया ही नहीं बचेगा तो कौन सा मिडिया बचेगा….?!