Home डॉ. दीपक आचार्य सर्वशक्तिमान की शरण पाएँ

सर्वशक्तिमान की शरण पाएँ

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Man raising arms toward the sky
Share this articleहम जहाँ से भेजे गए हैं और जिसने हमें भेजा है उसे हम भूलते जा रहे हैं और यहाँ आकर छोटी-मोेटी ऎषणाओं और तुच्छ इच्छाओं का दासत्व स्वीकार कर उलटे-सीधे धंधों में इस कदर रमे हुए हैं कि हमेंं अपनी मंजिल का भान तक नहीं होता। हर रोज हम कभी बाहरी चकाचौंध तो कभी भीतर हिलोरें ले रहे इच्छाओं के महासागर से इच्छित वस्तु को ढूंढ़ लाने की
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