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हे राम ! राम-राम

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हे राम ! हम शर्मिन्दा हैं। हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं। हम सारे विवश हैं। हमारे हाथ-पाँव बँधे हुए हैं। हमारे मुँह बँधे हुए हैं जब राम की बात आती है। और जहाँ राम नहीं हैं, वहाँ हमारे हाथ लम्बे हैं, पाँव बाहर हैं और खुद फूले हुए गुब्बारों की तरह हम चौड़े-बाजार संकरा वाली स्थिति में हैं। राम का नाम केवल हमारी औपचारिकताओं वाला तकिया कलाम ही
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