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मौज उड़ाएं दुमछल्ले

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जिसकी लाठी उसकी भैंस, मालिक मेहरबान तो गधा पहलवान, सैया भए कोतवाल तो डर काहे का … आदि-आदि कहावतों और जुमलों का दौर आज भी बरकरार है लेकिन अपने नए-नए अंदाजों और आधुनिकताओं के साथ। आजकल शक्ति का विकेन्द्रीकरण होने के बावजूद शक्तियाँ सब जगह बंधक और नज़रबन्द की तरह हैं। दमदार और दुमदार लोगों की एक जमात उग आने के बाद यह कांग्रेस घास, धतूरे, सत्यानाशी और बेशर्मी की
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