(जी.एन.एस) ता. 15
अहमदाबाद (रविन्द्र भदौरिया)
वैसे तो सास्कृतिक धरोहर समान ऐतिहासिक बलिया महोत्सव की झलक उत्तरप्रदेश मे मुख्यरूप से देखने को मिलती है। लेकिन नदी-पंखी को कोइ सीमा-सरहद नहीं रोक शकती वैसे ही संस्कृति को भी कोइ सीमा बांध नहीं शकती। बलिया महोत्सव युपी की सिमा पार कर गरवी गुजरात पहुंचा है और इस साल भी ये महोत्सव होने जा रहा है।
बलिया महोत्सव को लेकर गुजरात बलिया के आयोजक प्रेमप्रकाश सिंह का कहना है कि पूर्वाचंल की संस्कृति की एक झलक बलिया महोत्सव के जरिये गुजरात मे साहित्य, संस्क्रति और वीरता की धरती पर प्रस्तूत करेंगे। यह अनूठा कार्यक्रम 16 नवंबर को “एक शाम बलिया महोत्सव के नाम” के तहत अहमदाबाद के पूर्व क्षेत्र निकोल के वीर शहिद मंगल पांडये हॉल में आयोजित होगा, जिसमें बलिया से पधारे सुपरस्टार ओर विधायक, IPS पुलिस अफसर, गुजरात के मुख्य सचिव जे.एन.सिंह उपस्थित रहकर बलिया महोत्सव की शोभा बढ़ाएंगे। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि केन्द्रीय मंत्री परषोत्तम रूपाला जी है।
दरसल बलिया के पीछे की कहानी कुछ इस तरह से है। भारत को मिली आजादी से पहले बलिया आजाद हुआ। बलिया के आजाद होने की दास्तान दुनिया के स्वंत्रता आंदोलनों के इतिहास में सबसे अलग व अनूठी रही। उसके बाद 19 अगस्त 1942 के दिन लोगों ने राष्ट्र की अखंडता को अक्षुण्ण बनाये रखने के संकल्प के साथ बलिया की आजादी का जश्न मनाया जबसे इसी पंरपरा के चलते बलिया महोत्सव मनाया जाता है। इसी के चलते बलिया को उत्तरप्रदेश के पूर्वांचल वासी खूब धाम धूम से मनाते है। ठीक उसी तरह बलिया महोत्सब पिछले दो वर्षों से गुजरात के अहमदाबाद में भी आयोजित हो रहा है। आपको बता दे कि बलिया एक ऐसी पावन धरती है जहाँ पर महर्षि भृगु ने भगवान विष्णु को लात मारने के बाद बलिया में तपस्या कर मुक्ति प्राप्त की थी। बलिया भारत के पूर्व प्रधानमंत्री एवं लोहियावादी नेता चन्द्रशेखरजी की भी कर्मभूमि रही है. वे यहीं से चुनकर आते थे. इतना ही नहीं 1857 की क्रांति के वीर नायक और मंगल पांडेयजी की भी जन्म भूमि भी बलिया ही है।
अहमदाबाद के बलिया आयोजको का मुख्य उद्देश्य सांस्कृतिक समन्यव एवम सांस्कृतिक विरासत का आदान प्रदान। आयोजक प्रेम प्रकाशजी का कहना है कि पूर्वांचल की विशिष्ठ संस्कृति गौरवपूर्ण इतिहास एवम सामाजिक सौहार्द की जानकारी गुजराती समाज को मिले इसलिए गुजरात मे हम पिछले दो वर्षों से बलिया महोत्सब मनाते है। जिसमें स्थानिय गुजराती लोग बढचढ कर बिस्सा लेते है।
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