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करोडो युवा बेकार, महिलाए असुरक्षित, महंगाई की मार भारी, लेकिन हम धर्म के नाम पर नागरिकता देंगे……!

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कार्ल मार्क्स ने सही कहा था: धर्म अफिम है….पिये जा….पिलायें जा…..पिले पिले…ओ मोरे राजा….
भारत में धर्म की राजनीति के सिवा ओर रखा ही क्या है….?
क्या कभी कोइ सांसद कूपोषित बच्चे को लेकर सदन में गया भारत की तस्वीर दिखाने के लिये….?
हम 10 लाख लोगो को रोजगार देंगे…ऐसा कोइ विधेयक आया सदन में….?
तीन तलाक-धर्म से जूडा मामला, 370 भी करीब करीब धर्म से जूडा, राम मंदिर-धर्म से जूडा और नागरिक बिल भी धर्म से जूडा मामला….!

(जी.एन.एस., प्रविण घमंडे) दि.12
जानेमाने अर्थशास्त्री कार्ल मार्क्स ने धर्म को अफीम कि संज्ञा दी है. जैसे अफीम को ग्रहण करने के पश्चात मनुष्य को सुध-बुध नहीं रहती वैसा ही व्यवहार धर्म के नाम पर कीसी मत को मानने वाले करते हैं. कार्ल मार्क्सने 1843 में धर्म को लेकर यह परिभाषा दी थी. तब से लेकर आज तक उसमें कोई बदलाव नहीं आया….!
आज 21वी सदी के प्रथम पा सदी में भी भारत के संसद में नागरिक सुधार बिल में पाकिस्तान-अफघानिस्तान और बांग्लादेश से आये हिन्दुओ को, बौध्धो को पारसीओं को धर्म के नाम पर भारत की नागरिकता देने का और इसी तीन देशो से भारत आये मुस्लिमों को भारत की नागरिकता नहीं देने का विवादी बिल आया तब विधेयक पेश करनेवाली पार्टी भाजपा के फंदे में सभी विपक्षी दल उसमें मानो अफीम के नशे में फंसते चले गये और देश की अन्य महत्वपूर्ण समस्याओं को भूला दी गई…!
भारत के सामने इस वक्त आर्थिक मंदी, मेंहगांई, बेरोजगारी, भूखमरी-कूपोषण, महिला सुरक्षा जेसे सवाल मूंह फाडे खडे है. जैसे मंत्री महोदया ने कह दिया की प्याज के भाव बढे या घटे मूझे क्या, मैं थोडी न प्याज खाती हूं कह कर पल्ला झाड दिया वैसे ही सत्ता दल भाजपा या कोई भी सरकार चाहेंगी की लोग उसे याद न करे और अपनी सरकार की नांव हौले हौले ऐसे ही विधेयकों के सहारे अगले चुनाव तक आराम से चलती रहे….!
संसद लोकतंत्र का एक मंदिर है. लोगों की आस्था का प्रतिक है की कहीं न्याय नहीं ममिला तो सदन में तो उसकी आवाज कोइ न कोइ उठायेंगा और उसकी सुनवाई होंगी. लेकिन संसद में क्या हो रहा है…?
संसद में बेरोजगारी दूर करने का धारा-370….तीन तलाक या नागरिक सुधार बिल जैसा कोई प्रस्ताव सरकार या विपक्ष की ओर से पेश हुआ क्या…?
हमारी सरकार देश के 10 लाख लोगो को रोजगारी देना चाहते है, उसका प्रस्ताव विधेयक के रूप में आ रहा है आईये, उसे समर्थन दे…ऐसा कभी सरकार ने या सरकारों ने कभी कहा….?
रोजगारी को छोडिये जनाब….विधानसभा और संसद में महिलाओं को 33 प्रतिसत आरक्षण का बिल अभी तक आसमान से टपके खजूर में लटके की तरह लटका हुआ है लेकिन देश की आधी आबादी महिलाओं की मगर उनके लिये आरक्षण नहीं, सुरक्षा नहीं…उनके कपडों के बारे में टीप्पणी करना, महिला मानो बच्चा पेदा करने वाली मशीन हो ऐसे की नेता हिन्दुओं को उकसाते है- हिन्दु धर्म खतरे में है…..धर्म के लिये ज्यादा से ज्यादा संतान पेदा करो….का नारा देते है. जब की ऐसा नारे देनेवाले के यहां एक भी संतान नहीं होती ये अलग बात है.
भारत भूखमरी और कूपोषण में भाजपा जिसका जिक्र हर बार करती है उस पाकिस्तान से भी खराब हालत में है. कूपोषित बच्चे देश को कैसे आगे ले जायेंगे….?
क्या संसद में भाजपा या प्रतिपक्षने कूपोषण के खिलाफ स्वच्छता अभियान की तरह जंग-ए-एलान के लिये कोई प्रस्ताव लाये…? बच्चे भूख से बिलख बिलख मर जाते है लेकिन संसद में….. हम धर्म के नाम पर नागरिकता देंगे……!
सरकार चलानेवाले दल को देश की समस्याओं में ज्यादा रस न हो ये स्वाभिवक है. लेकिन संसद में कूपोषण को रोकने के लिये कीसी जनप्रतिनिधि ने अध्यक्ष के सामने जा कर नारेबाजी की क्या…? क्या कीसी सांसदने गरीबी दूर करने के लिये धरना-प्रदर्शन किया या ऐसी बवाल मचाई की उसे मार्शलों द्वारा उठा कर बाहर ले जाना पडा हो…?
तीन तलाक का विधेयक धर्म से जूडा था, धारा 370 भी धर्म के साथ कुछ कुछ हद तक जूडा था(कश्मिरी मुस्लिमों को भारत के साथ जोडना), राम मंदिर का मसला धर्म से जूडा है…लेकिन जो मसला धर्म से जूडा न हो लेकिन मानव धर्म से जूडा हो ऐसा कोइ मामला सदन में आया या आयेंगा…?
भारत की वर्तमान इकोनोमी इतनी मजबूत है की कई रेटींग एजन्सीयों ने भारत की रेटींग घटा दी…! जानेमाने उद्योगपति राहुल बजाज को भरे दरबार में सरकार के तीन मंत्रीओं के सामने कहना पडा कि सर, देश डरा हुआ है….हम सरकार की आलोचना करे तो कैसे करे….सरकार के कदम ठीक नहीं ऐसा कहे तो कैसे कहे…क्योंकि हमे नहीं मालुम की सरकार उसे कैसे लेंगी…!!
मंत्री महोदया के बयान अजीब से है. प्याज के दाम 200 के पार हो गये लेकिन केन्द्र सरकार या कीसी सरकार ने व्यापारियों पर छापे मारे हो, प्याज का जथ्था बरामद किया हो ऐसा कुछ हुआ क्या…?
खेती की सीझन में देश में प्याज की कीतनी बुआई हुई असके आंकडे सरकार पास होते है, कितनी पैदावार हुई, खेती को नुकशान हुआ हो तो उससकी जानकारी भी सरकार के पास होती है, मंडीयों में कितना प्याज पहुंचेंगा उसका अंदाज भी सरकार के पास होता है अन्य कृषि पैदावार की तरह. क्यों तूर्की या अन्य देश से प्याज पहले से ही आयात नहीं की गई…? रिटेल बाजार में प्याज के दाम 50 के पार….100 के पार…होते चले गये तब सरकार जागी और कहा की हमने विदेश से प्याज आयात की है….?
लेकिन तब तक करोडो -करोडो लोगो की जेब से जो खरबों रूपिये एक सिर्फ प्याज के लिये चले गये उसका क्या पासवानजी….? क्यों पहले से ही भाव को रोकने के लिये विदेश से प्याज नहीं मंगवाई गई…? खेती के सभी आंकडे सरकार के पास होते हुये भी कभी टमाटर, कभी प्याज, कभी दाल और न जाने किन किन चीजों के दाम बढने के बाद सरकारी एलान- डोन्ट वरी, हम है ना….धर्म की घूंटी पिलाने के लिये…..पिजिये और भूल जाईये प्याज-व्याज को…..मस्त मलंग की तरह धर्म में मस्त रहो….प्याज क्या है…उसके दाम तो बढेंगे-घटेंगे… लेकिन धर्म को बचाना जरूरी है, पाकिस्तान से आये हिन्दुओं धर्म के नाम पर नागरिकता देना जरूरी है…बांग्लादेश से आये बौध्धों को भी भारत का बनाना है धर्म के नाम पर….!
कार्ल मार्क्स ने सही कहा था. धर्म अफिम है….पिये जा….पिलायें जा…..पिले पिले…ओ मोरे राजा….पियेगा नहीं तो जियेंगा कैसे….? और प्रतिपक्ष भी ऐसा ही…. धर्म के नाम पर हम ये नहीं होने देंगे…..!
अरे भाई, बेकारी के लिये सरकार के सामने लडो….महिला सुरक्षा के लिये सरकार पर दबाव लाओ….कीसी कूपोषित बच्चे को लेकर संसद में सरकार को दिखाओ….सरकार छापे नहीं मार रही तो प्रतिपक्ष जनता रेड तो कर सकती है या नहीं….?
प्रतिपक्ष की प्रतिक्रिया- जाने भी दो यारो….जनता कमल के फूल से उब जायेंगी तब आयेंगी हमारी बारी…..अब की बारी किस की बारी…..!