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डूंगरपुर उपद्रव किसी बड़े आंदोलन की आहट तो नहीं..?

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यह अभ्यर्थियों का उपद्रव तो नहीं लगता..! क्षेत्र में माओवादियों से संबंधित गतिवधियों की आशंकाएं पहले भी जताई जा चुकी हैं..! भील राज्य की मांग पिछले लंबे समय से है..!

लकी जैन, (G.N.S)। डूंगरपुर में चल रहा उपद्रव.., बेकाबू हालात.., आगजनी.., लूट.., हजारों आदिवासियों का हाईवे पर उतरना.., पुलिस पर पथराव.., कानून की धज्जियां…., ये सब कुछ सिर्फ एसटी अभ्यर्थियों की 1167 सीटों पर भर्ती की मांग को पूरा करने का आंदोलन तो नहीं लग रहा है..। इसके पीछे की हकीकत शायद डरावनी हो सकती है, जो मेवाड़ अंचल की पहचान तक ही बदल दे..। कहीं डूंगरपुर का यह उपद्रव आदिवासी अंचल के किसी बड़े मूवमेंट का ट्रेलर तो नहीं है…? क्यों कि जितने बेकाबू हालात हाईवे पर बाहरी तौर पर दिख रहे हैं, उसकी गंभीरता और हिंसकपन अंदरूनी तौर पर कहीं ज्यादा है..।

इस अंचल के आदिवासियों का हाईवे पर आकर आजादी के नारे लगाना किस आजादी की मांग करना है..? कहीं यह मूवमेंट भील राज्य की मांग का एक ट्रेलर तो नहीं है..? जिसकी पिक्चर रिलीज होना अभी बाकि हो..? अगर ऐसा है तो इस आग जद में में सिर्फ राजस्थान ही नहीं, गुजरात और मध्यप्रदेश का बाॅर्डर एरिया भी आएगा। स्थानीय प्रशासन पिछले लंबे समय से इन सब बातों को लेकर डरा हुआ है और जूझ भी रहा है। साल 2012-13 से ही मेवाड़ के आदिवासी अंचल के चिह्नित क्षेत्रों में माओवादियों से संबंधित गतिविधियों की आशंकाओं के इनपुट सरकार के पास आते रहे हैं। सरकार ने भी अपनी खुफिया एजेंसियों को इस बिंदु पर अलर्ट किया हुआ है और आदिवासी अंचलों में होने वाले आंदोलनों, बैठकों की चर्चाओं से संबंधित गोपनीय सूचनाओं को इकट्ठा करने के टास्क दिए हुए हैं।

आदिवासियों में असंतोष, मंदिरों का टूटना अचानक से तो नहीं हुआ, यह चरणबद्ध तरीके से हुई घटनाएं तो नहीं..?

आमतौर पर आदिवासी अंचल के लोग अपने ही क्षेत्र में रहते हैं और वहीं के रीति रिवाज, परंपराएं अनुसरण करते हैं। मेवाड़ अंचल के आदिवासी भी ऐसे ही है। इनके कई कानून देश में लागू कानून से अलग चलते हैं, लेकिन ये हमेशा से संतोषी प्राणी रहे हैं। लेकिन पिछले 7-8 सालों में इन आदिवासियों में एक असंतोष पनपा है।

सरकारी उदासीनता, सरकारी योजनाओं का लाभ इन तक नहीं पहुंचना और इनकी जमीनों पर गैर कानूनी ढंग से हो रहे कब्जे भी इस असंतोष का बड़ा कारण हो सकते है। हालां कि इस असंतोष को पैदा करने के पीछे एक बड़ी राजनीति भी हो सकती है। खैर कारण कई हो सकते हैं, लेकिन बड़े स्तर पर असंतोष तो है।

बीटीपी के विधायकों का जीतना इस असंतोष का सूचक है..

इसके बाद इस क्षेत्र में भारतीय ट्राइबल पार्टी का गठन और मोदी लहर के बीच इसके विधायकों का जीतकर आना भी इस असंतोष का ही सूचक है, जो कि सामान्य तो नहीं है। इसके बाद डूंगरपुर में ही कुछ मंदिरों के तोड़े जाने की घटनाएं होना भी सामान्य नहीं है। और अब एक असंवैधानिक मांग के लिए लोगों का इतनी बड़ी संख्या में लामबंद होना और हाईवे जाम कर सड़कों पर उतर आना भी अचानक हुई घटना नहीं हो सकती है।

ये और ऐसी कई घटनाएं लगातार इस क्षेत्र में चरणबद्ध तरीके से हो रही हैं। सरकार के पास इन सभी घटनाओं और इनके पीछे की हकीकत के इनपुट लगातार आते रहे हैं। लेकिन अब इसको लेकर समाधान निकालने की जरूरत है, द्विपक्षीय वार्ता करने की जरूरत है। आदिवासियों में पनपे या पनपाए गए असंतोष के कारणों को जानकर उसके समाधान की जरूरत है। अगर इस मुद्दे पर अब भी समाधान को लेकर चर्चा नहीं हुई, तो सरकार की उदासीनता, कहीं मेवाड़ अंचल की पहचान न बदल दे..? कहीं किसी बड़े मूवमेंट को हवा न मिल जाए..? जो बाद में तूफान बन कर एक बड़ी-लंबी तबाही का कारण न बन जाए..?