(G.N.S) Dt. 12
विनोद कुमार शुक्ल
पांच राज्यों में जब चुनावी बिसात बिछ गएँ हो और भाजपा एक असामान्य चुनावी रणनीति पर काम कर रही हो तो यह कहना कि वह अपनी नई रणनीति के माध्यम से 2024 के चुनावों की तैयारी में भी लगी है तो यह गलत नहीं होगा। भाजपा ने अपने प्रत्याशियों के नाम पहले से ही घोषित करके सबको स्तब्ध कर दिया था और जिस तरह से अब तक उसने 18 सांसदों को जिसमे केंद्रीय मंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री भी शामिल है उन्हें चुनावी मैदान में उतारा है उसे देखकर एक बात साफ़ है कि भाजपा की नई रणनीति में पुराने नेताओं के बदले एक नए नेतृत्व को तैयार करने का इरादा साफ़ नजर आ रहा है।
भाजपा इन लोगों को अगर मार्गदर्शक मंडल में न भी भेजे तो उन्हें महत्वपूर्ण पदों से सेवनिबृत्त करने की दिशा में आगे बढ़ गई है और उसे विरोध को लेकर बहुत चिंता भी नहीं नजर आ रही है। लोग 15 -20 साल से उन्ही चेहरों को देखकर ऊब चुके हैं और यह भाजपा का सत्ता विरोधी बासीपन और सरकार में नयापन देने का तोड़ निकाला है। चुनावी परिणाम इसकी सफलता और असफलता पर अपनी मुहर लगाएंगे लेकिन विपक्षियों के लिए ये निर्णय पहेली जरूर बन गया है।
भाजपा में इस बदलाव को लेकर पार्टी में होने वाले असंतोष पर किसी भी दबाव में नहीं है और कई जगह हो रहे विरोधों के बावजूद अपनी रणनीति और निर्णय पर कायम है। संगठन से जुड़े लोगों का कहना है कि लम्बे समय से संगठन में इस बात को लेकर मंथन चल रहा था कि इस परिस्थिति से कैसे निपटा जाए क्योंकि भाजपा के प्रति नाराजगी से ज्यादा बोरियत नजर आ रही है। इस परिस्थिति से निबटने के लिए एक बार फिर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी सम्हालते हुए ये तरकीब निकाली है । इस रणनीति का सबसे बड़ा सन्देश है कि किसी भी मुख्यमंत्री या पूर्व मुख्यमंत्री के कंधे पर चुनाव में नेतृत्व की जिम्मेदारी नहीं सौपी गई है और चुनाव चिन्ह को आगे रखा गया है।
पार्टी के नेताओं का मानना है कि भाजपा यह जानती है कि इन चुनावों के तुरंत बाद लोक सभा के आम चुनाव होंगे तो उन परिस्थितियों में ऐसी रणनीति पर काम करना जो दोनों के लिए मददगार साबित हो, यह एक बेहतर फैसला है। विधान सभा के चुनावों में इस तरह के निर्णयों से एक बात और साफ़ हो गई है की लोक सभा चुनावों में कुछ ऐसे लोगों को मौका मिल सकता है जो बड़े नेताओं के द्वारा सीट पर कब्ज़ा किये रहने के कारण मौका चूक जाते है जो उन्हें नए उत्साह के साथ विधान सभा चुनावों में जुट जाने का मौका भी दे रहा है और नेतृत्व क्षमता दिखाने का भी। एक और बात साफ़ है की जितने बड़े नेताओं को चुनाव मैदान में उतारा गया है उनमे से कोई अकेला यह दावा नहीं कर सकता की वही मुख्यमंत्री पद का दावेदार है चाहे वह राज्य मध्य प्रदेश हो, राजस्थान हो या छत्तीसगढ़। सूत्रों ने बताया कि कुछ राज्य जीतेंगे कुछ हारेंगे लेकिन 2024 में हारने का विकल्प को भाजपा नकारने पर काम कर रही है। कम से कम वर्तमान रणनीति के यही मायने नजर आ रहे है।