Home दिल्ही NATIONAL दिया कुमारी के बरक्स वसुंधरा राजे, बदलाव के मायने

दिया कुमारी के बरक्स वसुंधरा राजे, बदलाव के मायने

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(G.N.S) dt. 13

विनोद कुमार शुक्ल  

हालाँकि भाजपा ने अब तक पूर्व केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ समेत सात सांसदों को राजस्थान के चुनावी मैदान में उतारा है लेकिन इनमे विद्याधरनगर से दिया कुमारी को दावेदार बनाया जाना राजस्थान की राजनीति में एक बड़े बदलाव का संकेत है। चूँकि दिया कुमारी को पूर्व उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत के दामाद नरपत सिंह राजवी का टिकट काटकर चुनावी मैदान में उतारा गया है इसलिए विरोध के स्वर काफी मुखर हैं। भाजपा नेतृत्व ने  केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी की अध्यक्षता में 11 सदस्यीय समिति बनाई है जो नेताओं की बात सुनकर केंद्रीय नेताओं को अपनी रपट सौपेंगे। लेकिन बदलाव को विराम दिए जाने की कोई सम्भावना नहीं है। 

क्या दिया कुमारी का चुनावी मैदान में उतारा जाना एक बिना सोचा समझा निर्णय है या जल्दबाजी में लिया गया निर्णय? यह दोनों बाते सही नहीं है। जब भाजपा ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में अपने उम्मीदवारों की घोषणा की थी तो राजनितिक विश्लेषकों का कहना था कि शायद राजस्थान में सहमति नहीं बन पाई है या पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को लेकर संगठन में कोई उहापोह है। लेकिन भाजपा ने राजस्थान में इसे जानबूझ कर विलम्बित रखा क्योंकि वे वहां नेतृत्व बदलाव चाहते थे और वो भी बिना किसी विरोध के।

ज्यादातर जिन लोगों को टिकट नाकारा गया है वो वसुंधरा के नजदीकी बताये जा रहे हैं लेकिन विधान सभा के चुनावो में दिया कुमारी को उतार कर भाजपा ने रानी वसुंधरा राजे के बरक्स महारानी दिया कुमारी को खड़ा कर एक नया चुनावी दांव खेला है इसका कितना असर इस चुनाव में होगा यह तो परिणाम बतायेंगे लेकिन इसके निश्चित तौर पर दूरगामी परिणाम होंगे और इस निर्णय ने राजस्थान में वसुंधरा राजे युग को विराम देना लगभग तय कर दिया है। भाजपा ऐसा इसलिए भी कर पा रही की कि पिछले विधान सभा चुनाव में भाजपा सरकार दोहराने का मौका सिर्फ वसुंधरा राजे के कारण चूक गई थी। इन चुनावों में वसुंधरा के विरोध के कारण अगर भाजपा को 10 सीटों का नुकसान भी होगा तो भाजपा को वसुंधरा से मुक्ति का मार्ग भी आसान होगा और वह उसके लिए तैयार है।

दूसरी तरफ दिया कुमारी जो भाजपा के हिंदुत्व राजनीति की न केवल बड़ी हामी हैं बल्कि  कुछ वक्त पहले ही वह आगरा के मशहूर ताजमहल को अपना बता चुकी हैं।  दीया कुमारी ने कहा था कि ताजमहल उनके परिवार का था और मुगल बादशाह शाहजहां ने कब्जा कर लिया था. उन्होंने दावा किया था कि उनके पास इससे जुड़े साक्ष्य और दस्तावेज भी हैं. जरूरत पड़ी तो कोर्ट को दिखाने को तैयार हैं। इन सब के जनता के बीच और चुनावी मायने है। राजस्थान में आम जनता के बीच भी जयपुर राजघराने का अपना एक विशेष स्थान है और वह निश्चित तौर पर धौलपुर राजघराने से काफी ज्यादा है।

दिया कुमारी न केवल अपनी सीट पर जीत हासिल कर पाएंगी बल्कि राजस्थान के काफी बड़े क्षेत्र में प्रभावी होंगी और यही रणनीति है जिसके तहत भाजपा ने दिया कुमारी को विधान सभा के चुनावी मैदान में उतारा है। क्या 2023 के विधान सभा चुनाव राजस्थान में एक नए राजनितिक परिदृश्य के लिए तैयार कर पाएंगे या नए समीकरण औंधे मुँह गिरेंगे ?