आखिर अमेरिका के थिंक टैंक ने क्यों की भारत के परमाणु हथियारों के निशाने पर चीन के ठिकानों के होने की बात..?
लकी जैन (जी.एन.एस.)।
विश्व कोरोना से तो जूझ ही रहा है, साथ ही महाशक्ति बनने की महत्वाकांक्षाओं के चलते दो धड़ों में भी बंट भी गया है। एक धड़े का मुखिया है अमेरिका, दूसरे का मुखिया है चीन। विश्व की महाशक्ति बनने का प्रयास कर रहे ये दो देश एक-दूसरे को नीचा करने के प्रयास में लगे हैं, फिर चाहे उन्हें भड़काउ बयान देना हो, डब्ल्यूएचओ पर दबाव बनाना हो या ऐसी कोई हरकत करनी हो, जो युद्ध की ओर इशारा करता हो।
लेकिन इन सब के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी है भारत। पड़ोसियों के प्रति उदारदिल रहने वाले भारत की पिछले कुछ समय से अपने पड़ोसी देशों के साथ ज्यादा अच्छे रिश्ते नहीं है। भारत-चीन का सीमा विवाद तो अब अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बन चुका है। इससे सभी वाकिफ हैं कि आखिर सीमा पर हो क्या रहा है। लेकिन इस बीच विश्व की महाशक्ति होने का दावा करने वाला अमेरिका क्या भारत-चीन के इस विवाद को भी मौके की तरह ले रहा है..?
अमेरिका भले ही कोरोना से जूझ रहा हो, लेकिन वह चीन के बढ़ते कद को गिराना और बढ़ते कदमों को पीछे धकेलना चाहता है। वह चाहता है कि चीन इतना शक्तिशाली न हो जाए कि वह विश्व की महाशक्ति कहलाए। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में महाशक्ति होने के कई मायने होते हैं।अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प कई बार चीन विरोधी बयान खुले मंच पर दे चुके हैं और दोनों देशों के बीच स्थिति काफी तनावभरी भी है। लेकिन तनाव कितना भी हो अमेरिका और चाइना का आमने-सामने का युद्ध तब तक संभव नहीं है जब तक उसे कोई जमीन न मिल जाए। तो क्या अमेरिका चीन के साथ युद्ध के लिए जमीन पाने की फिराक में है..?
यहीं से शुरू होता है अमेरिका का वह छलावा भरा रूप जिससे भारत को सतर्क होने की जरूरत है। अमेरिका व्हाइट हाउस की ओर से जारी बयान और अमेरिका के थिंक टैंक द्वारा जारी की गयी रिपोर्ट इस ओर इशारा करती है कि भारत-चीन सीमा विवाद को अमेरिका मौके की तरह देख रहा है, तो क्या अमेरिका चीन से आमने-सामने के युद्ध के लिए भारत को युद्ध भूमि बनाना चाहता है।
अगर ऐसा नहीं है तो अमेरिका की ओर से ऐसे बयान क्यों आ रहे हैं, जो भारत-चीन के विवाद को कम करने के बजाए उकसाने का काम कर सकते हैं।
15 जून को गलवान घाटी में सीमा पर भारत के 20 सैनिकों को चीन के सैनिकों ने झड़प में धोखे से मार दिया था, तब दोनों देशों के बीच एकाएक युद्ध जैसे हालात पैदा हो गए थे। दोनों देशों के राजनेताओं, उच्च अधिकारियों के बीच कई-कई बार बैठकें हुई।
शीर्ष अधिकारियों की बातचीत में जून अंत और जुलाई की शुरूआत से ही यह खबरें आने लगी थी कि चीनी सेना पूर्वी लद्दाख में पीछे हटने को तैयार हो गयी है। इस बीच इस मसले को और सुलझाने के बजाए अमेरिका व्हाइट हाउस की ओर से एक बयान जारी होता है, जीएनएस न्यूज एजेंसी पर 7 जुलाई को जारी हुई खबर के अनुसार व्हाइट हाउस की ओर से जारी बयान में कहा गया कि अगर भारत और चीन के बीच युद्ध जैसी स्थिति होती है तो अमेरिका भारत का पूरी तरह सपोर्ट करेगा।
अब सवाल है कि अमेरिका यह बयान उस वक्त ही जारी क्यों करता है जब भारत-चीन के शीर्ष अधिकारियों के बीच हो रही बातों से समाधान और सुलह की ओर कदम बढ़ने लगे थे..?
सीमा पर विवाद जारी है, लेकिन तनाव गत माह की तुलना में कम बताया जा रहा है। दोनों देशों के बीच की परिस्थितियों को बेहतर करने का प्रयास किया जा रहा है। इस बीच जीएनएस न्यूज एजेंसी पर 22 जुलाई को जारी हुई खबर के अनुसार अमेरिका के थिंक टैंक की एक रिपोर्ट जारी होती है। जिसमें दावा किया गया है कि चीनी ठिकाने भारतीय परमाणु हथियारों के निशाने पर हैं।
अब यहां सवाल यह है कि परमाणु हथियारों के उपयोग की बात अभी करना क्या सही है..? अमेरिका के थिंक टैंक की यह रिपोर्ट क्या दोनों देशों के बीच पनपे विवाद में आग में घी का काम नहीं करेगी..?
अमेरिका के थिंक टैंक की यह रिपोर्ट इस बात की ओर भी इशारा कर रही है कि अगर भारत-चीन के बीच युद्ध होता है, तो इसमें परमाणु हथियारों का उपयोग हो सकता है। परमाणु हथियार में परमाणु बम भी शामिल होते हैं। तो ऐसी स्थितियों में क्या भारत को अमेरिका के उकसावे में आकर अपनी जमीन को किसी महा युद्ध की भूमि बनाना चाहिए..?
क्यों कि भारत अगर चीन के साथ युद्ध में अमेरिका के लिए युद्ध भूमि बना और महायुद्ध में परमाणु बम का उपयोग हुआ तो उसमें सबसे ज्यादा खतरा भारत को ही होगा और यह खतरा तब ज्यादा बड़ा होगा जब चीन जैसा दुश्मन हो, जिसके लिए युद्ध में कोई नैतिकता, अंतर्राष्ट्रीय संधी या नियम मायने नहीं रखते।
जापान जैसा विकसित और समृद्ध देश आज भी दूसरे विश्वयुद्ध में हीरोशिमा-नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बम के घावों से उबरा नहीं हैं, तो क्या भारत इस घाव से उबर पाएगा, वो भी तब जब देश कई प्रकार की अंतर्रकलह, कोरोना महामारी, आर्थिक मंदी से जूझ रहा हो।
ऐसे में भारत को अब हर कदम फूंक-फूंक कर रखना होगा, ताकि वह दो महाशक्तियों के बीच की लड़ाई का मोहरा न बन जाए। भारत को देखना होगा कि वह किस तरह अपनी अस्मिता को बनाए रखे और महाशक्तियों के लिए युद्धभूमि भी न बने।