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अधूरी जांच पर ही मरीज ले रहे डायबिटीज की दवा: डॉ. एस कुमार।

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भारत में अधूरी जांच के चलते 90% से ज्यादा मरीज ले रहे हैं डायबिटीज की दवा। जबकि जरूरत कुछ अतिरिक्त जांच की है। डायबिटीज के मामलों में आधुनिक रिसर्च कर लाखों मरीजों को दिया नया जीवन।

नई दिल्ली। देश के जाने-माने वैज्ञानिक और एप्रोपीरीएट डायट थेरेपी सेंटर के फाउंडर सीएमडी डॉ एस कुमार ने भारत में लगातार डायबिटीज मरीजों की बढ़ती संख्या पर चिंता जताते हुए कहा कि आज के जमाने में जब भारत में अति आधुनिक जांच उपलब्ध है, बावजूद इसके 90 प्रतिशत से ज्यादा डायबिटीज के रोगी अधूरी जांच के चलते और पूरी जानकारी न होने के कारण डायबिटीज की दवा और इन्सुलिन ले रहे हैं। यह देश के लिए न केवल एक चुनौती है बल्कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में बहुत गंभीर समस्या भी है। आज इसी से संबंधित आयोजित होने एक पत्रकार वार्ता में डॉक्टर कुमार ने कहा कि मधुमेह रोग का नाम सुनते ही सबसे पहले लोगों के मन में यही ख्याल आ जाता है कि, अब उन्हें का ताउम्र जीवन भर दवा के सहारे अपना आगे की जिंदगी जीना पड़ेगा। यही सबसे बड़ी मिथ्या है क्योंकि रोगियों को पूरी जानकारी नहीं है। डॉक्टर कुमार ने कहा कि उनके लिए भी एक वैज्ञानिक होने के नाते बहुत बड़ी चुनौती थी कि आखिर इस रोग से लोगों को कैसे मुक्ति दिलाए। उन्होंने इस और गहन रिसर्च कर यह देखा कि मेडिकल साइंस में भी इस रोग में डायबिटीज में कुछ महत्वपूर्ण टेस्ट की जानकारी दी गई है।जिसे आमतौर पर देश के चिकित्सक मरीजों को सलाह तक नहीं देते हैं।

उन्होंने कहा कि सी- पेप्टाइड टेस्ट होमा (आईआर), फास्टिंग सिरम इन्सुलिन सेंसटिविटी और बीटा सेल फंक्शन का टेस्ट इस रोग में बहुत ही महत्वपूर्ण है। किंतु डॉक्टर इस टेस्ट के लिए रोगियों को सलाह तक नहीं देते हैं। समय बदला जब देश में यह आधुनिक टेस्ट मौजूद है तो फिर आखिर प्रॉब्लम कहां है? डॉ कुमार ने कहा कि जब वह इस और बढ़े और मरीजों में फास्टिंग, पोस्टमिल और एचबीए 1सी के अलावा सी-पेप्टाइड टेस्ट,होमा (आईआर) और बीटा सेल फंक्शन जैसे प्रमुख टेस्ट के लिए रोगियों को सलाह दी और जब पूरी जांच सामने आई तो टेस्ट चौंकाने वाली थी क्योंकि उनके सेंटर पर जितने भी रोगी आए उनमें से किसी को मधुमेह रोग था ही नहीं। और ऐसे रोगी पिछले 20-20 साल से दवा और इंसुलिन ले रहे थे। उन्होंने कहा कि जब पहले से ही ऐसे रोगियों में सी पेप्टाइड मौजूद था और बीटा सेल फंक्शन भी अच्छी तरह से काम कर रही थी, बॉडी में इंसुलिन भी बन रही थी तो फिर डायबिटीज की दवा या फिर इंसुलिन लेने की जरूरत ही क्या थी ? उन्होंने देश के 56 सेंटरों के माध्यम से लाखों मरीजों को इस रोग से निकाला और आज गर्व के साथ कह रहे हैं कि आने वाले समय में उनके रिसर्च से भारत को डायबिटीज रोग से मुक्ति मिल जाएगी। डॉ कुमार ने कहा कि सबसे ज्यादा इसमें जो महत्वपूर्ण है वह यह है की जानकारी ही बचाव है।