Home डॉ. दीपक आचार्य उल्लू बनाओ

उल्लू बनाओ

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मानवीय सभ्यता में जब तक पूर्ण अनुशासन के भाव विद्यमान थे तब तक हर व्यक्ति अपने-अपने काम में लगा रहता था। किसी के पास भी फालतू चर्चाएं करने, आलोचना और निन्दा करने और बेकार बैठे रहने की फुरसत नहीं थी। और न ही उस जमाने में लोगों को निरर्थक चर्चाओं और बकवास में विश्वास था। वे अपने जीवन के एक-एक क्षण का पूरा-पूरा सदुपयोग करने की कला को जानते थे
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