लगातार विस्फोटक होती जा रही जनसंख्या के साथ ही लोगों के फितुर और हरकतों में भी नवाचारों के साथ इजाफा होता जा रहा है। आदमी अपनी आदमीयत के तमाम प्रतिनिधि कारकों को एक-एक कर छोड़ता जा रहा है और उसके स्थान पर वह सब अंगीकार करता जा रहा है जो कभी पशु, कभी असुर और कभी पिशाचों के गुण रहे हैं। आदमी अपनी पूरी यात्रा में उन सारी अच्छाइयों और