लेखक – अशोक मनवानी
भोपाल । आज विश्व जनसंपर्क दिवस है। ऐसा माना जाता है कि दूसरे विश्व युद्ध के समय जनसंपर्क कार्य की व्यवस्थित शुरुआत हुई।मित्र देशों को अपनी छवि का निर्माण करना था।अखबारों को वैसी सामग्री उपलब्ध करवाने की व्यवस्था उस दौर में प्रारम्भ हुई।वैसे प्राचीन युग में भी भिन्न स्वरूप में इस तरह के कार्य होते रहे, चाहे कोई भी व्यवस्था रही हो ।अब जनसम्पर्क कार्य के महत्व से शासकीय और कार्पोरेट क्षेत्र का हर व्यक्ति भली-भांति परिचित है। मप्र का जनसंपर्क महकमा अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर माना जाता है।जनसंपर्क अधिकारी भी इसी समाज का हिस्सा हैं।इनके व्यक्तित्व की बात करें तो मान सकते हैं कि ये पत्रकार नुमा अधिकारी होते हैं जो उपलब्धियों को निरंतर रेखांकित करते रहते हैं। किसी व्यक्ति या संस्थान की प्रतिष्ठा में वृद्धि उसके श्रेष्ठ कार्यों और अच्छी छवि बनाने के लिए किए गए प्रयासों से होती है। सरकारों के जनसम्पर्क विभाग आम जनता को सूचित, शिक्षित और जागरूक बनाने का कार्य करते हैं। यही नहीं सरकार के प्रमुख लोगों की छवि बनाना भी जनसम्पर्क विभाग के प्रमुख दायित्व में शामिल है। दरअसल काफी चुनौती पूर्ण होता है जनसम्पर्क अधिकारी का दायित्व। इस कार्य से जुड़े व्यक्ति को पल-पल नई सूचनाएं और जानकारियां प्राप्त करने की ललक होना चाहिए। आज अनेक संस्थान सिर्फ सही दिशा में किए जाने वाले प्रचार और जनसम्पर्क वजह से तुलनात्मक रूप से बेहतर माने जाने लगे हैं। बदलते समय में विकास की प्राथमिकताएं भी बदलती हैं। यदि किसी राज्य में बुनियादी क्षेत्रों में स्थिति में क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ है तो उसे प्रभावी ढंग से रेखांकित भी किया जाना चाहिए। यह प्रचार का अतिरेक नहीं। वास्तविक प्रगति का वास्तविक प्रचार होना ही चाहिए। जनसम्पर्क अधिकारी संस्थान की कोशिशों को बेहतर जानता है। प्रत्येक बदलाव पर उसकी पैनी नजर होती है। उससे बेहतर कोई भी संस्थान को नहीं जानता, समझता। जनसम्पर्क अधिकारी के रूप में मेरा अनुभव है कि संदेश स्पष्ट हो, बात नपी तुली हो और उसे कहने का तरीका बहुत कठिन भी न हो तब आपका समाचार और विचार पत्र-पत्रिकाओं में अच्छा स्थान प्राप्त कर ही लेता है। समाचार में दोहराव और लम्बे वाक्यों से जरूर बचा जाए। आज प्रचार के लिए पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो, टीवी के अलावा आज सोशल मीडिया की भी आवश्यकता होती है। एक समय था जब लोक माध्यमों का प्रयोग भी काफी होता था। मध्यप्रदेश के गठन के बाद सूचना प्रकाशन विभाग ने गांव-गांव में शिक्षा, परिवार नियोजन और देश-भक्ति की थीम पर बनी फिल्मों का प्रदर्शन करवाया। यह सिलसिला लगभग तीन दशक चला। नब्बे के दशक में वीडियो फिल्म दिखाई जाने लगीं। शहरों और कस्बों में शासन के विकास कार्यों और योजनाओं पर आधारित छोटी-छोटी फिल्में प्रदर्शित की जाती थीं। इसके बाद नई सदी की शुरूआत सोशल मीडिया के दौर से हुई। आज पत्र-पत्रिकाओं और टीवी चैनल्स की बढ़ती संख्या के कारण उन्हें निरंतर कंटेन्ट की आवश्यकता होती है। इसकी पूर्ति समाचार एजेन्सियां, फीचर एजेन्सियां और विभिन्न पोर्टल से की जाती है। किसी समय गांव-गांव जाकर सिनेमा दिखाने वाला सरकार का जनसम्पर्क अधिकारी आज मैनेजमेंट के युग में नई भूमिका में आ गया है। उसे कन्टेंट तैयार करने के अलावा कार्यक्रम आयोजित करने, प्रमुख लोगों से व्यक्तिगत रिश्ते बनाने और प्रकाशन, प्रसारण के मुद्दे तय करने का कार्य भी करना होता है। यह समय के साथ दिखाई देने वाला परिवर्तन है। यूं कहें कि यह वक्त की मांग भी है। यह भी सच है कि जनसम्पर्क से जुड़े व्यक्ति का सकारात्मक दृष्टिकोण, मित्रता भाव, अच्छी भाषा, सद्व्यवहार और परिश्रम उसे अपने कार्य में सफलता दिलवाता है। समन्वय और सहयोग के रवैये से कार्य करने वाले जनसम्पर्क अधिकारी अपने दायित्व निर्वहन में अच्छी कामयाबी प्राप्त करते हैं। बोलचाल की भाषा में कहें तो यही कह सकते हैं कि जनसम्पर्क अधिकारी को बड़ा दिल रखकर कार्य करना चाहिए। जनसम्पर्क अधिकारी अन्य अधिकारियों से ज्यादा भिन्न नहीं होता लेकिन ऐसा माना गया है कि वह मिलनसार जरूर होना चाहिए। कहने का अर्थ एक जनसम्पर्क कर्मी को सहज और सुलभ व्यक्ति वे रूप में पहचाना जाना चाहिए। त्वरित निर्णय लेने में भी जनसम्पर्क कार्य के स्तर का अनुमान लगाया जाता है। तत्परता जनसम्पर्क के कार्य की अहमियत को बढ़ाने में मददगार है। जनसम्पर्क विशेषज्ञ रविन्द्र पंड्या के अनुसार जनसम्पर्क अधिकारी को क्या करना है, यह पता होने से अधिक ये पता होना चाहिए कि क्या नहीं करना है। संकट के समय जनसम्पर्क की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। आज समय के साथ अनेक मान्यताएं बदल भी गई हैं। जनसम्पर्क का शासकीय तंत्र के अलावा उद्योग जगत,फिल्म क्षेत्र और फैशन की दुनिया में विशेष महत्व है। अमिताभ जैसे वरिष्ठ अभिनेता भी अपनी छवि मेंटन रखने चिंतित रहते हैं।सेलेब्रिटी होने के नाते अनेक लोग अपना मानवीय चेहरा प्रचारित करते हैं। इनमें वास्तव में अनेक जन कल्याणकारी कार्य करते भी हैं,लेकिन उनका प्रचार जरूर करते हैं।हाल ही में एक साक्षात्कार में अभिनेता सलमान खान ने इस बात को स्वीकार किया कि फिल्म प्रमोशन के लिए अभिनेताओं की नेक नियति के किस्से ,कहानियां गढ़ी जाती हैं जो उचित तो नहीं लेकिन आज की दुनिया में शायद जरूरी हैं। इस दौर में आप क्या हैं यह बात मायने नहीं रखती बल्कि आप क्या प्रोजेक्ट हो रहे हैं,इसका महत्व बढ़ गया है।किसी वक्त आजादी के आंदोलन में समाचार पत्र योगदान देते थे।इन दिनों कोरोना संक्रमण के संकट में समाज और सरकार की अच्छी कोशिशों को मीडिया ने अच्छा स्थान दिया है।इसमें जनसंपर्क विभाग के अधिकारी भी आफिशियल मीडिया होने के नाते प्राण प्रण से जुटे हैं।