आम तौर पर आतिथ्य सत्कार हमारी परंपरा रही है। हमारे वंशानुगत संस्कारों में इसे यथोचित महत्व दिया गया है। अन्नदान और जल सेवा को भी इस मायने में सर्वोपरि माना गया है। कहा जाता रहा है – अन्नदान महादान, जल सेवा प्रभु सेवा। इसी प्रकार अतिथि को देवता की संज्ञा देते हुए कहा गया है – अतिथि देवो भव। बात चाहे किसी आम इंसान की हो या फिर अतिथि की।